Saturday, April 30, 2011

समर्पित कर दे ..



समर्पित कर दे अब  वर्त्तमान को 
तू भटक न जाना संसार में 

अर्पित कर दे  सब  कर्म को 
तू ठिठक न जाना तिरस्कार से 

द्रवित कर ले ह्रदय  पाषाण को 
तू दहक न जाना अहंकार में 

संचित कर ले सत्य धर्म को 
तू बहक न जाना प्रचार में 

कम्पित कर दे  व्यर्थ  अज्ञान को 
तू छिटक न जाना   मझधार में 

खंडित कर दे अर्थ भ्रम को 
तू खनक न जाना व्यापार से 






2 comments:

  1. शानदार रचना। बधाई स्वीकार करें। मैं भी बिहार के बिहार शरीफ से ताल्लुक रखता हुॅ।
    वक्त मिले तो हमारे ब्लाग पर भी पधारें।

    my contact no. 9835434312.

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  2. बहुत सुन्दर ...हरेक पंक्ति प्रेरक सूत्र वाक्य...

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