Sunday, May 22, 2011

तू हमेशा पास ही रहती है..

हमारे मध्य 
जो मनमुटाव था 
वो रेत पर बने निशाँ थे 
पाँव के 
जो मिट गए 
हमारे प्रेम के लहरों में खो कर ...

हमारे बीच 
कभी संदेह  का आगमन हुआ ही नहीं
क्योंकि हम 
एक दूजे में 
दो पानी की बूँद  जैसे मिल गए थे
जिसे अलग नहीं किया जा सकता ..

आपसी समझ के ताप से वो 
वाष्प बनकर फिर से
ओस का निर्माण कर लेते थे 
किसी सूखे पत्ते को 
आस की बूँद देकर ....

हो सकता है हम बिछूड गए हों 
पर तेरे दिए उपहार आज भी 
मेरे छत  के ऊपर से
बादल बन कर जाया करती हैं 
और 
गलियों में खेलते बच्चे 
बरसात के इंतज़ार में 
खुश हो जाते हैं 
और उनके चेहरे पर रौनक और पैरों में फूर्ती आ जाती है ...

और फिर  मुझे तेरी याद आ जाती है
की तू ऐसे ही आया करती थी
और रोज़ शाम काम से घर लौटने पर
तू मुझे पानी के लिए
पुछा करती थी
और
अपने पल्लू से कभी कभी 
मेरे पसीने पोछ दिया करती थी ...

तू हमेशा पास ही रहती है..
                              



6 comments:

  1. साहित्य के रंगों से सुसज्जित रचना शुभकामनायें

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  3. हो सकता है हम बिछूड गए हों
    पर तेरे दिए उपहार आज भी
    मेरे छत के ऊपर से
    बादल बन कर जाया करती हैं
    और
    गलियों में खेलते बच्चे
    बरसात के इंतज़ार में
    खुश हो जाते हैं
    और उनके चेहरे पर रौनक और पैरों में फूर्ती आ जाती है ...bahut badhiyaa

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति|धन्यवाद|

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  5. bhut hi khubsurat bhaavo se saji rachna...

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