Wednesday, May 11, 2011

तुम्हारा ,बहुत शुक्रिया !

जाते  जाते 
एक सपनो की सीढ़ी 
दे गयी वो मेरे अँधेरे कूप 
निवास में !

कभी बाहर झाँका नहीं 
था !

घुलने लगा मैं 
बाह्य बादल में जाकर ,

और 
मिटटी की सोंधी खूसबू 
मुझे अन्यास ही 
उस  
सीढ़ी पर चढ़ 
अपने कृष्ण लोक को 
छोड़ने पर 
विवश कर देती थी ,

आज 
किसी  ने
उस कूप को 
ढक दिया है 
निराशा  के  काले पत्थर से !

और 
साथ रह गए हैं बस मेरे
उस कूप से बाहर आये 
मेरे विश्वास !

तुम्हारा ,बहुत शुक्रिया !
उस सपनो
के सीढ़ी के लिए ,

नहीं तो 
मेरा विश्वास भी दब जाता 
उस कृष्ण कूप में ...




अब मैं नहरों का रूख
इस सुखी धरा के ओर
मोड़  दूंगा  !

तुम्हारा ,बहुत शुक्रिया !

4 comments:

  1. तुम्हारा ,बहुत शुक्रिया !
    उस सपनो
    के सीढ़ी के लिए ,

    नहीं तो
    मेरा विश्वास भी दब जाता
    उस कृष्ण कूप में ...
    excellent

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  2. तुम्हारा ,बहुत शुक्रिया !
    उस सपनो
    के सीढ़ी के लिए ,

    ...बहुत सुन्दर ..

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  3. ख्वाबो का लाजवाब ताना बना ....

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  4. Wonderful creation Nishant ji .

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