Wednesday, June 29, 2011

दूर और पास ...एक एहसास

दूर और पास होने के भेद 
कम होने लगते हैं
जब कभी  मैं ढूंढता हूँ 
खुद को और 
तुझको नहीं पाता हूँ  ....

खुद से दूर होकर तुम्हारे पास 
चला आता हूँ
और ज़िन्दगी
तुझसे दूर कर देती है ...

पर इस क्रम में 
मेरी तलाश 
अब और सजग हो गयी है ...


एक अघोषित रिश्ता 
अब साथ है 
एहसासों के कर्तव्यों को 
निभाते और स्वीकार 
करते हुए अनवरत ..... 

अब  धीरे धीरे तू मेरा "मैं" 
बन गयी है 
अब मैं अकेला नहीं हूँ ...


और न ही गम तुम्हे 
अलग कर  पाएगी 
मेरे अस्तित्व से ,


क्या जल की धरा को 
कोई काट साकता है, नहीं न !
तो एहसासों के समुंदर को 
काटना भी गम के लिए
मुमकिन नहीं ...




3 comments:

  1. बहुत ही भावपूर्ण रचना बधाई

    ReplyDelete
  2. सुन्दर भाव नीलांश जी. कभी मैंने इसी भाव पर ये शेर लिखा था कि -

    निहारता हूँ मैं खुद को जब भी तेरा ही चेहरा उभर के आता
    ये आईने कि खुली बगावत क्या तुमने देखा जो मैंने देखा
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

    ReplyDelete
  3. sunder shabdo aur payr ke ehsaaso se rachi rachna...

    ReplyDelete

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...