Wednesday, December 28, 2011

मिट गया राह-ए-वफ़ा में तो गम ना कर

ख़्वाबों  से हकीकत में ,अब आया जाए 
शहर गुमसुम क्यों है ,उसे जगाया जाए 

मिट गया राह-ए-वफ़ा में तो गम ना कर 
कोई ना लुट जाए , उसको   बचाया जाए 

पास  शोहरत है तो काफिला संग है मगर 
गुरबत्त की रोटियों को यूँ न भुलाया जाए 

जो आइना दिखा कर अपना चेहरा छुपाये 
उसके इरादों को भी ज़रा  बताया जाए 

नफरत से मकान जलते हैं ,इश्क से दिल 
तो क्यों न अब आशिकी सिखाया जाए 

सब साथ  छोड़  देते हैं कुछ दूर चलकर  अगर 
तो क्यूँ न अब रूह को दोस्त बनाया जाए 

मातम मना तेरा  कहीं बेच न दे उसे ,तो 
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाए 

जब तेरे मामले का मुंसिब वही  कातिल है 
तो  मुस्लफी का अदद शोर क्यूँ मचाया जाए 

जब आई मंजिल तब साहिल पे इंसा न थे 
चलो,मजधार को ही दिल से अपनाया जाए 

"नील" जब नज़्म तेरी आहों को परवाज़ दें 
तो क्यूँ बेबसी में अश्क अब बहाया जाए 


Friday, December 23, 2011

जी भर के देख ले न मुझे अपनी नज़रों क़ी चाँद से ...

चाँद खेलता है मुझसे
कहता है कल आऊंगा
काले धब्बे को मैं चाँदनी के दूपट्टे  में छुपाऊंगा 

मैं कहता उसको  कि क्या होगा 
अमावास तो आएगी ही 
तू उदास होगा तो मेरा  दीप तुझे मुस्काएगी ही ...

वो कहता की देख ले मुझको आज जी भर के जाना 
कल का क्या भरोसा मैं चाँद हूँ 
कई चकोर हैं 
तू समझ न जाना की प्रेम का न कोई छोर है ...

तू अपने आँखों से 
मेरे धब्बो को देखती है 
तू उसको काजल कहती है 
मुझको सुंदर कहती है
तू निश्चल है मेरी जाना 
पर मुझे सभी का होना है 
तू मेरे चाँदनी को आज जी भर देख ले जाना ...

मेरे काले धब्बे को आज 
उकेरना किसी कागज़ पर 
मुझे दिखाना अगले पूनम पर 
मेरी तश्वीर और बताना कि 
तू मुझे किस रूप में देखती थी ....

जिसने जैसा रूप देखा मैं उसका हो गया ...
कितने चकोर आये गए पर कितनो को
मिल पाया मैं ?


बस जाता हूँ उनके दिल में 
जिनके दिल निश्चल होते हैं ...
मैं न रहूँ तो भी वो याद मुझे करते हैं ...


कभी  कागजों  पर तो कभी अधरों पर 
कभी साजों पर तो कभी 
ख़्वाबों में ही फ़रियाद करते हैं ...

ऐसे चकोर का मैं खुद दीवाना हूँ
चाँद हुआ तो क्या हुआ जाना  मैं भी
एक  परवाना हूँ ...


आओ न चकोर!
 आज की रात देख लो  न मुझे जी भर के 
मेरी चाँदनी आज तुम्हारी नज़रों से 
खिल उठी है ,


देखो
बादलों ने भी घूंघट डाल दी है मुझ पर....
तारे आज तेरी बारात की 
स्वागत में टिमटिम करके 
रौशनी के फूल बरसा रहे हैं...


आओ न चकोर .....
जी भर के देख ले न मुझे अपनी नज़रों क़ी  चाँद से ...

*नीलांश 

Thursday, December 22, 2011

जो आइना सा साफ़ है ,उसकी सफाई ले ले

जो आइना सा साफ़ है ,उसकी सफाई ले ले 
ये मोहब्बत जो हमें रास ना  आई ले ले 

अगर तुम्हे लगता है ये चाहत बेमानी है
तो आके दिलनशीं हमारी पाई पाई ले ले

तू खुश रहे सनम हमको ये ज़मीन दे दे 
और उस नीली आसमां की तू उंचाई ले ले 

ए नमाज़ी,ज़रा,देख,वो बच्चे बहुत भूखे हैं
छोर के परस्तिश जा उनकी दुहाई ले ले

अब अँधेरे को मिटाना है अगर तुझको 
तो भूल बेबसी ,कलम-ओ-रोशनाई ले ले 

हर मोड़ है पहेली,है मौत है अब आसां
ये ज़िन्दगी अदब से है आजमाई ले ले
हम न मिलेंगे दुनिया के किसी कूचे में
दिल में ही तेरे वास्ते दुनिया बसाई ले ले

हर रंग ज़माने के देखे तुझसे बिछुड़ के
आज उस रंग से ही मेहँदी रचाई ले ले

उस जुलाहे ने कल नींद को पाला है
जारे में तेरे लिए बुनी है रजाई ले ले
गर कभी तेरे दर पे आकर खुदा मिले 
तब मिटा के हमें दिल से,उससे खुदाई ले ले 

"नील" को भुला दे मगर ये सुन लेना
तेरे दीवानगी में जो नगमे बनाई ले ले 




Thursday, December 15, 2011

दिन मेरा ढल गया

लगता है तीर दिल के पार निकल गया 
सुबह है अभी  मगर दिन मेरा ढल गया 

बुलाया उन्होंने ,गए शिद्दत से दिल लेकर
और गए तो वहाँ का मौसम बदल गया

लगता है ज़माने को पता चल गया था
इसलिए शम्मा से पहले परवाना जल गया

जब तगाफुल किया हुस्न को शिरत देख
तो वो खुदगर्ज़ सर-ए-आम दहल गया

ज़ीस्त को बनाया ही क्यों ठंडी बर्फ से
जो ज़रा सी गरमी से आज पिघल गया

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल अब दीखते नहीं
बेअदब जूनून बचपन को निगल गया


ग़म-गुसार नहीं अब रहा ये ज़माना भी 
जिसको दी थी मुरब्बत वो ही छल गया 

ये तंज ही तो है कि सब मिसाल देते हैं 
कि मेरा हश्र देख ये गुलशन संभल गया 

आपसे क्या कहते तश्वीर से ही बोले ,मगर 
"नील "अब  तो उसका भी मन बहल गया 



Wednesday, December 14, 2011

डरते थे !

 नूर-ए-नज़र उनकी   पाने से डरते थे
सर-ए -महफ़िल मुस्कुराने से डरते थे!!! 

यूँ  तो  तसव्वुर  में  भी  वो  थे  मौजूद 
हाल-ए-दिल मगर सुनाने  से  डरते  थे !!!

खुशियाँ ढूँढी  थी  उनकी  हर ख़ुशी में 
ना लग जाए नज़र ,ज़माने से डरते थे !!!

चुप चाप  रह कर सुना उनके दर्दों को 
मरहम  उन्हें पर ,  लगाने से डरते थे !!

तिनके तिनके कर बीते गए थे रैना  


हम उनको सदा खो जाने से डरते थे !!!

ए "नील" हकीकत में फ़रिश्ता मिला था 
पर ख्वाब हसीं हम सजाने से डरते थे !!!







Friday, December 9, 2011

आज जब वो नहीं है तो उनकी बात का फ़साना निकला

वो बोल गए इक दिन की भुला दे  हम 
सारे ख्वाब को लिख कर जला दे हम 

आज जब वो नहीं है तो उनकी बात का फ़साना निकला
नज्मो के रूह से आज भी जलता हुआ परवाना निकला 

इक अदद याद में तुम तबाह न करो महफ़िल को
ये सागर से भी है गहरा ,यूँ छोटा न करो दिल को

तो

आओ, रोते हुए उन चेहरों को हंसाया जाए
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाए

मखमली ख्वाब के समंदर में डूब कर देखो
क्यों न उनसे ही हसीं सरगम बनाया जाए

वफ़ा की उम्मीद में इश्क को बदनाम न कर
अश्कों से ही सही,दिल का दिया जलाया जाए


दीवाली का जश्न तो हर साल होंगे ,मगर
कभी फौजियों को भी सुना-सुनाया जाए

कश्ती नीलाम न हो जाए कहीं साहिल पर
ए "नील",उन,लहरों पर दाँव लगाया जाए

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...