Friday, December 9, 2011

आज जब वो नहीं है तो उनकी बात का फ़साना निकला

वो बोल गए इक दिन की भुला दे  हम 
सारे ख्वाब को लिख कर जला दे हम 

आज जब वो नहीं है तो उनकी बात का फ़साना निकला
नज्मो के रूह से आज भी जलता हुआ परवाना निकला 

इक अदद याद में तुम तबाह न करो महफ़िल को
ये सागर से भी है गहरा ,यूँ छोटा न करो दिल को

तो

आओ, रोते हुए उन चेहरों को हंसाया जाए
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाए

मखमली ख्वाब के समंदर में डूब कर देखो
क्यों न उनसे ही हसीं सरगम बनाया जाए

वफ़ा की उम्मीद में इश्क को बदनाम न कर
अश्कों से ही सही,दिल का दिया जलाया जाए


दीवाली का जश्न तो हर साल होंगे ,मगर
कभी फौजियों को भी सुना-सुनाया जाए

कश्ती नीलाम न हो जाए कहीं साहिल पर
ए "नील",उन,लहरों पर दाँव लगाया जाए

9 comments:

  1. वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।

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  2. मखमली ख्वाब के समंदर में डूब कर देखो
    क्यों न उनसे ही हसीं सरगम बनाया जाए
    waah

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  3. मखमली ख्वाब के समंदर में डूब कर देखो
    क्यों न उनसे ही हसीं सरगम बनाया जाए

    bahut badhiya ... vaah

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  4. बहुत ही खुबसूरत और कोमल भावो की अभिवयक्ति......

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  5. वाह क्या गज़ल है. दिल को छू गयी. इस शानदार रचना के लिए बधाई.

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  6. वाह!!! बहुत खूब लिखा है आपने...

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  7. आप सब का बहुत आभार

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  8. संवेदनशील अहसास बधाई

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