Thursday, June 30, 2011

भंवरे

बगिये  में  भंवरे
बहुत दूर से आया करते हैं
कृष्ण तन होता है लेकिन निर्मल 
मन वो रहते हैं 

देखो न ,
तभी तो शहद कितना मधुर हुआ करता है

बेरहम मौसम के प्रहारों से 
वो पुष्प तो मुरझा जाते हैं

पर वे कृष्ण काय भंवरे उसकी
खुशबू को जिंदा रखते हैं ...

Wednesday, June 29, 2011

दूर और पास ...एक एहसास

दूर और पास होने के भेद 
कम होने लगते हैं
जब कभी  मैं ढूंढता हूँ 
खुद को और 
तुझको नहीं पाता हूँ  ....

खुद से दूर होकर तुम्हारे पास 
चला आता हूँ
और ज़िन्दगी
तुझसे दूर कर देती है ...

पर इस क्रम में 
मेरी तलाश 
अब और सजग हो गयी है ...


एक अघोषित रिश्ता 
अब साथ है 
एहसासों के कर्तव्यों को 
निभाते और स्वीकार 
करते हुए अनवरत ..... 

अब  धीरे धीरे तू मेरा "मैं" 
बन गयी है 
अब मैं अकेला नहीं हूँ ...


और न ही गम तुम्हे 
अलग कर  पाएगी 
मेरे अस्तित्व से ,


क्या जल की धरा को 
कोई काट साकता है, नहीं न !
तो एहसासों के समुंदर को 
काटना भी गम के लिए
मुमकिन नहीं ...




Monday, June 27, 2011

हमने चुन ली है राह दूसरी कोई!!

पल -छिन लिए जाते हैं ,एक अनंत सफ़र की ओर
शुरू कहाँ से किया था हमने ,कहाँ होगा अपना ठौर ...

जीत मिलने पे अभिमान नहीं,हार भी हमको है मंजूर
कांटे राहों के चोट अहम् को दे कर,तोड़ देते हैं सारा गुरूर

कहती है खुशबु बहारों की ,रब साथ है अपने
काफिला छूटा तो क्या, नहीं बदले हैं मेरे सपने

बुला रहा सूरज बाहर का ,तुम आओ न कभी मेरी ओर
लेकिन राह चुनी है हमने ,जो जाती अंतर की ओर

काफी है हमको वही रौशनी , रहती है जो अपने अंदर
छाता है जब बाहर अन्धकार ,रौशन कर देती सब मंजर 


आगे बढ़ता है  कोई,  इनाम पाने के लिए 
कोई बढ़ता है ज़ख्म दिखाने के लिए 

राहबर है कोई यहाँ  , तो  कोई बढ़ता है एहसान उतारने के लिए 
हम ऐसे हाजी है  जो बढ़ते हैं  ,खुद को समझने ओर पहचानने  के लिए ..


झांकते है अपने खुद में ,परखते  हैं खुद की  रौशनी को 
इम्तेहान देते हैं रोज़ ,उसी रौशनी को जिंदा रखने के लिए ...





ज़िन्दगी

ये ज़िन्दगी आईने को भी आइना दिखा देती है 
इंसान का क्या ,पत्थर को भी खुदा बता  देती है 

जब भी चलती है एक कारवां  संग चलता है 
रूक जाए  तो सिकंदर को भी रास्ता दिखा देती है 

टूटते ख़्वाबों के दरमियाँ बनते बिगड़ते रिश्ते 
ये तो हर इक   रिश्ते का मतलब सिखा देती है 



मुकम्मल जहां की तलाश में कुछ न हो हासिल 
ये मगर मौत का तोहफा दे एहसान जता देती है 

देखते ,ढूंढते ,समझते रहे सारे कायनात को 
ये मगर वो किताब है जो हमें खुद का  पता देती है 

यही   दोस्त ,यही दुश्मन ,यही हमसफ़र है "नील"  
ये गर चाहे  तो मरघट में भी घरौंदा बसा देती है  


Sunday, June 26, 2011

एक नयी नवेली सुबह की मंजिल पर निकलेगी साकी आज की रात ...

टूटे  हुए  प्याले
रूठे  हुए  पीने  वाले 



साकी  है  मौन 
निहारती  हुई  अपने  मधुशाला  को  
अंगूर वाली मधुलता से  जिसे  कभी  बनाया  था 
मधु  का  दान  करने  के  लिए  ......


पर  क्यूँ  ?


क्यों  से  
सृजन होगा   
एक  नयी  शुरुआत  का,



उम्मीदों  का  संबल
विश्वास  की  शक्ति
और  
कोशिशों  के  सफ़र पर
माझी  बनकर  खुद
अपने  सपनो  की  किश्ती  में
एक  नयी  नवेली सुबह  की  मंजिल  पर
निकलेगी साकी 
आज की रात  .....

और  आयेंगे
फिर  नए  सपने  लिए कई  यात्री ...
आशा  की दीपक  के संग  और
फिर  से  बनेगी  एक  मधुशाला  ...



दूर कहीं किनारे पर.....

Saturday, June 25, 2011

दिए से बाती को जुदा नहीं करते !!

दिए से बाती को जुदा नहीं करते 
दोस्त बन बनकर दगा नहीं करते 

गुल के संग कांटे भी खिला करते हैं 
चंद  लफ़्ज़ों के लिए, गिला नहीं करते 

महबूब तो दिल में रहा करते हैं 
उनकी गलियों का ,पता नहीं करते 

फ़रिश्ते होते हैं खुदा के बन्दे 
उनसे नफरत की ,खता नहीं करते 

राह में शोर न मचाया करना 
लोग अब शुक्र भी, अदा नहीं करते 

तू पहचान ले खुदी को शायर 
खुद को युहीं , फ़िदा नहीं करते 

बड़ी मुश्किल से इज्ज़त बनती  है 
बेखुदी में इसे ,फना नहीं करते  

.......
"नीलांश निशांत  "  








हर सांस में आरज़ू जीने की दफ़न है ...

हम  तो  उस शहर  में  हैं  जहाँ  गम  ही  गम  है
पर  निशार   हर  ख़ुशी  पर   हमारी  हर  नज़्म   है
उसे  ही  सुनकर  हम  भी  खुश  हो  जाया  करते  हैं  ...
लोग  अब कहते    हैं  की   बन्दे   में  कितना   दम   है  ...

जब  रात  के  अँधेरे  में  सारा  जहाँ  सोता  है ...
हम  गम  में  डूबकर  ही  लिखते   कोई   ग़ज़ल  हैं ...
उसे  दूर  महफिलों  में  कोई  सुना  करता  है .......
हम  तो  खुश  हैं  इसी   में  ,की  गुलज़ार  वो  गुलशन  है ...

अब  ज़िन्दगी  बेपरवाह   कट  जाएगी  हमारी ...
हर  सांस   में  आरज़ू  जीने  की  दफ़न  है ...
बेहिसाब  गम  की  बारिश  करना  मेरे  प्याले  में ...
हम  छलकायेंगे   खजाना   ख़ुशी  का ,जब  तक  दम  में  दम  है ...

हम  तो  उस  शहर  में  हैं  जहाँ  गम  ही  गम  है ...

जो कभी एक थे आज उनसे ही ये सारा ज़माना बन गया ...

राह  में  अकेला  नहीं  है तू  मुसाफिर
तुमने  पुकारा  हमको
हमने  तुमको आवाज़ दी
और इक  कारवां  बन  गया

जो  कभी  एक  थे  आज  उनसे  ही
ये सारा  ज़माना    बन  गया  ...


मुश्किलों  में  अपनों  का  साथ
हो  तो  हर मुश्किलें  हार  जाते हैं 
अमावस में चाँद न हो  मगर
तारे फिर भी टिमटिमाते हैं

खुशियों  में  साथ  दें  हम गर
तो जीवन  एक  गीत  सुहाना  बन  गया  ...
मिलते  नहीं  मेहरबान इस पत्थर की शहर में

जो मिल सके तो समझो आशियाना बन गया ...

जो  कभी  एक  थे  आज  उनसे  ही
ये सारा  ज़माना    बन  गया  ...


मन  मंदिर  में  ही तो  इश्वर  रहते हैं
हम उनसे अलग कब होते हैं 

जो बस गया इस मंदिर में 
वो ही कबीरा ,वो ही रैदास  
वो ही मीरा  और सूरदास सा 
दीवाना  बन  गया  ...
वो खुद में ही इक शम्मा
और खुद में ही
परवाना बन गया ...

जो  कभी  एक  थे  आज  उनसे  ही
ये सारा  ज़माना    बन  गया  ...

मन  की  तरंगो  को  सुन  कर  चले  आओ
आओ खुशबू   है यहाँ हरदम 
इस गुलशन में समा जाओ 

जो मन मिल सकें तो समझना 
ज़िन्दगी इक  नेक  फ़साना  बन  गया ...

जो  कभी  एक  थे  आज  उनसे  ही
ये सारा  ज़माना    बन  गया  ...



इंतज़ार

लोग धुप में छाँव ढूँढा करते हैं 
शहर में गाँव ढूंढा करते हैं 

ये भूल जाते है कि किसी नज़र में इंतज़ार उनका भी  है !


पीपल के छाँव में

दिन भर के काम से थका हारा 
पीपल के छाँव में बैठा है वो पथिक ,


ये सोचता हुआ कि
घर पर आज सोना होगा फिर से 
काले आसमान के तले ,

इसलिए सुस्ता लेता है थोड़ी देर 
उसके असंख्य पत्तों को 
रब कि मेहर मान  जो उसे पंखा झूल रहे हैं ,

क्या हुआ जो घर में बिजली नहीं है 
मेहनत की  है तो रब ने ये पीपल को 
लहलहाया है उसके लिए ,

आज बच्चों को कहानी सुनाएगा 
इस पीपल की कोई अच्छी सी ,

वो भी सिख जाएँ मेहनत का अर्थ 
और जीना सिख जायें ...


इत्तेफाकों में खो कर उसकी कहानी हो गयी!

मिट गया वो जिस पे तेरी मेहरबानी हो गयी
बेनाम था मगर अब उसकी भी कहानी हो गयी!!

उसकी इबादत को तो काफिर कह कर ठुकराया
उनकी जफ़ाओं की भी , दुनिया दीवानी हो गयी !!

मालूम है कि कागजों पर अब भी वो नाम होंगे
पर रेशमी रश्मों से ,गलियाँ वीरानी हो गयी !!

अब भी वहीँ है अल्हड़ , बस चाँद को ताकता है
अब बादलों की है साजिश , फिर बेईमानी हो गयी !!

चर्चे होते हैं अब भी हर महफ़िल हर सफ़र में
इत्तेफाकों में खो कर उसकी कहानी हो गयी!!

ये कैसी ख़ामोशी है ...

ये  कैसी  ख़ामोशी   है ....  


कभी   देखा    है  तूफ़ान  के  पहले   की  ख़ामोशी .....




कहीं पौधों को काटकर बनाये हुए कंक्रीट के शहर हैं तो 
कहीं  नदियाँ के पानी को रोका गया है निरर्थक बाँधों  से ...


पर आज उन घरों में दुबके लोग डरे हुए हैं इस तूफ़ान से कि इसकी नीव  न हिल जाए कहीं ....
पौधे होते तो इस तूफ़ान की गति को क्षीण कर स्वयं थपेरों को सहते हुए उनकी रक्षा कर लेते शायद ......


पर जब सच को दबाया  जाता है 
तब  अन्दर ही अन्दर एक ज्वाला जलती है 
और जिस दिन अति हो जाती है प्रपंचो और झूठे खेल की 
तो सब एक हो कर आक्रमण करते हैं ज्वालामुखी बनकर  
जिससे झूठ की प्रकृति में छुपे हुए  झूठे चेहरे झुलस जाते हैं .....
शायद इसी को क्रान्ति कहते हैं ....

Tuesday, June 21, 2011

वो एक ख्वाब न था !

हम-तुम  मिले जब , वो एक ख्वाब न  था 
बहारा था शायद , मगर अज़ाब न था !!

दिल-ए -महफ़िल  में हैं ,महफूज़ मंज़र सारे 
कोई खबर या  ख़त  का वो  हिसाब न था !!

झील की खामोशी सी तेरी मुरब्बत थी 
क्या हुआ  "नील " ,जो  कोई  ज़वाब न था !!

खनकते सिक्कों  से ये  रिश्ते टूट जाते हैं 
क्या ये कम है क़ि  तेरा कभी इताब  न था !!

तबस्सुम खिल जाए, तेरी हर हरक़त में 
इससे बढ़कर तो कोई और शबाब न था !!

किस्सा-ए-ग़म सुनाने की कोई गर्ज़ न थी 
ये दिल की दवा थी  ,कोई शराब न था !!



"नीलांश" 






Monday, June 20, 2011

चाँद!


 ख़्वाबों में एक आस जगा कर मिला
रात चाँद खुश था मुस्कुरा कर मिला

गम-ए-दिल दवा बनी दीदार-ए-यार में
मसीहा हो कोई जो घर आ कर मिला

रूह सुलग रही थी मिलन की आस में
बादलों की बूंदों को वो  बरसा कर मिला

तारों की बारात टिमटिमाते रहे मगर
वो तो उनको भी तरपा तरसा कर मिला

आइना कौन उसको दिखाएगा भला
वो तो जब मिला खुद को भुला कर मिला

सुबह -ओ - शाम जलता रहा वो मगर
चाँदनी से आज खुद को सजा कर मिला

बेमज़ा थे   हर रंग इंतज़ार-ए-होली में
हर रंग ज़माने के वो दिखला कर मिला

नूर-ए-आफताब लुटाता रहा ताउम्र जो
आज सारे रश्मों को वो मिटा कर मिला

"नीलांश "

Friday, June 17, 2011

उस रोज़ बड़े चैन से वो सोया था !





ज़माना मौसम सा हरदम रूप बदलता रहा
जैसे सांझ रोज़ आकर धुप निगलता रहा !!

ओस की महफ़िल थी ,हवा आई और खो गयी
वो मुसाफिर दूर कहीं ख्वाब पर पलता रहा !!

रिश्ते सारे बर्फ से इस शहर में बनते गए
गम के भीनी आंच में वो भी पिघलता रहा!!

अजनबी शहर से बड़ी उम्मीद की थी उसने
हर शख्स चाँद सा पर ,उस चकोर को छलता रहा !!

उसकी जुबान पर भी लगता था शख्त पहरा
सिला काफिरों सा उसकी बंदगी को मिलता रहा !!

ऐ "नील" उस रोज़ वो बड़े चैन से सोया था
और कब्र पर मोहब्बत का बस एक दिया जलता रहा !!



















Thursday, June 16, 2011

नूर-ए-खुदा से रौशन ये जिंदगानी हो गयी !

मिट गया वो जिस पे तेरी मेहरबानी हो गयी
बेनाम था मगर अब उसकी भी कहानी हो गयी!!

वो बादलों को ओढ़ लेती है   ,तुम तारों में खो जाते हो
खुद करते हो नादानी ,उसकी बदगुमानी हो गयी ?

ज़ेहन को दूर रख कर ही इश्क किया करना
वरना न फिर कहना कि, कारिस्तानी हो गयी!!

दर्द-ए-जिगर ही तो आशिकों कि मुकम्मल दवा है
इस दर्द को चख कर ही, मीरा दीवानी हो गयी!!

इश्क-ओ-मोहब्बत तो उसकी ही बंदगी है
नूर-ए-खुदा से रौशन ये जिंदगानी हो गयी!!

Tuesday, June 14, 2011

आनंद


"आनंद "   तेरी  ग़ज़लों  का  आनंद  है  निराला   
भरता  हूँ उनसे ही अपने जिगर का प्याला 
किसी  रोज़  कोई  ग़ज़ल  कहीं  गलियों  में  सुनाई  देगी 
रहे "नील"   न  वहां ,पर  होगा  वहीँ  पर  प्याला 

जिन्हें हो तृष्णा आनंद की  वो  चखेंगे  उसको  हरदम 
और  कुछ  नहीं   उनको मिलेंगे  मधुर गीत और नज़्म 
अभिषेक  मन के उपवन  की उसे पीकर ही हो सकेगी 
रब  की  ओर  होगा  मुखातिब  हर  आनंद  पीने  वाला 


"नीलांश "

(आनंद द्विदेदी जी जो बहुत प्यारे प्यारे ग़ज़ल लिखते हैं और उनकी ग़ज़ल पर मैं कुछ तुकबंदी करता हूँ ,उसी तुकबंदी को ये समर्पित रचना है .)
बहुत आभार आनंद जी आपका और आपकी  मधुर ग़ज़लों  का 

Saturday, June 11, 2011

मौजूदगी

मौजूदगी

# # #
फिजाओं से
सुन लो
कोई
धुन
सुरमयी
तो लेना
नाम मेरा....

बिखरे
मोतियों की
तरह
लो सपने बुन,
तो लेना
नाम मेरा....

लहरों में गुम
रौशनी
देख पाओ
कभी
तो लेना
नाम मेरा....

बादलों में
ढूंढ पाओ
छवि मेरी
तो लेना
नाम मेरा....

खोज सको
धुंए में
कोई चिंगारी
तो लेना
नाम मेरा....

पौधों से
सुन लो
किसी की
किलकारी
तो लेना
नाम मेरा.....

Wednesday, June 8, 2011

आऊंगा,ज़रूर मैं आऊंगा ....

जब  दुआएं  संग  है  
और  बाकी  है  जीने  की  ललक  ,
तब  सूरज   की  लाली   को  छुपा   लाऊँगा  
चाँदनी  से  सफेदी  चुरा  लाऊंगा 

घास  पर  नंगे पाँव चलते -चलते  हरे  हो ही  गये  हैं  अपने  सपने 
और  न  मिली   भी   मुझे  
वो   दूर  खड़ी  ललचाती  हुई  फलक  !!

तो  ख़्वाबों   के  समुंदर  में  डूब 
मोतियों  से  शब्दों  को  चुन  ..
गीतों  की  माला  ही  बना  लाऊंगा ,

पर  आऊंगा  ज़रूर  गाँव  वापस  ...
कुछ  नहीं   तो  सपनो  को  संग  ले  आऊंगा  ..

आऊंगा,ज़रूर   मैं  आऊंगा ....

Sunday, June 5, 2011

हर कवि है इश्वर इस मंदिर में


कागज़ है पूजा की थाली 
और 
तिलक स्याह से करते हैं ,
भोग भाव के बना बना 
हम 
मन के  मंदिर में 
अर्पण करते हैं ,
प्रसाद कविता की होगी 
हर कवि  है इश्वर  इस 
मंदिर में ,
कलम से शंख  ध्वनि कर
आह्वान उन्ही का 
करते हैं ,



Saturday, June 4, 2011

तू ही हमारी नूर थी !



तू पास था दिल के साथिया,जब ज़िन्दगी मुझसे दूर थी  
तेरी  हर बात मेरा ख्वाब ,हर अंदाज़ मेरा  गुरूर थी 

अनजान  ही  रहा  सदा  , इस जहां  के  मिज़ाज  से 
 आशिकी  अपनी मगर ,तेरे शहर में  मशहूर  थी   

तुझसे गिला करता , ऐसा था  न अपना सिलसिला 
हमको तो तेरी सादगी से बेवफाई भी  मंज़ूर थी 

तू न बदले गम नहीं , बदले न तेरी शिरत कभी 
दफन हर अरमां  कर सकूं ,ये  कोशिशें बदस्तूर थी 

तुझसे बिछुड़े हुए यूँ तो ज़माना हो गया 
हर अमावस में मगर , तू संभालती ज़रूर थी 

अब जो तुझसे फिर कभी मिल न सकेंगे साथिया 
कैसे भुला दें  हम मगर ,कि तू ही दिल- ए -नूर  थी 

Thursday, June 2, 2011

कारवां को छोड़ना तू नहीं कभी


राह में अकेला नहीं है तू शायर 
तेरे वक़्त के पुराने कागज़ में 
लिखे हुए हैं नाज़ से वो 
ख्वाब तेरे साथ हैं 


फजूल है फिक्र राही 
है बेकार कल में उलझना 
आज जी ले जी भर के 
रब का तुझ पे हाथ है 


कोशिशें नहीं थमनी चाहिए
दिए को जलाने की 
तूफ़ान भी आया तो क्या 
दिल का घरौंदा 
ही तेरा कायनात है


रौशन कर ले उसे 
वक़्त का क्या तकाज़ा 
बस कुछ लम्हे हैं
रूहानी और बस 
उन्ही की बात है 


कारवां को छोड़ना तू नहीं  कभी 
खुदा खुद  जो 
तेरे इस सफ़र में 
तेरे साथ है 


हर शक्स है दीवाना 
हर शक्स तुझ सा ही है 
तू है अलग क्योंकि 
तेरे पाक ज़ज्बात हैं 


उनको कहते जा 
सादगी न छोड़ना कभी 
ये हार  है  न जीत है 
ना ही शह  और ना ही मात है 



कारवां को छोड़ना तू नहीं  कभी 
खुदा खुद  जो 
तेरे इस सफ़र में 
तेरे साथ है 



खुदा खुद जो तेरे इस सफ़र में 
तेरे साथ है ...

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...