Sunday, January 1, 2012

पतंग की डोर टूट गयी

पतंग  की  डोर  टूट  गयी
अब  किलकारियां  गुजेंगी   फिर  से

कुछ  वीरान  सा  था  ये  मुहल्ला
अब  गुलशन  यहाँ  भी  महकेंगे

शुक्र  हो  उस  नौसिखिये  पतंगबाज़ का
की  उसने  लोहा  नहीं  लिया  उन  अल्हड़  पतंगों  से

आज  तो  एक  खुशी  उसने  तोड़  गिदायी  है
दूर  तनहा  उस  पुराने  छत  से

पत्तंग  की  डोर  टूट  गयी
अब  किलकारियां  गूंजेगी  फिर  से ......

No comments:

Post a Comment

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...