Friday, January 6, 2012

कुछ सवाल रूह के भी है

बहार  चाँद  छुपने  बाला  है  बादलों  में
सोचा  दीदार  कर  लूं  जनाब  का
क्या  भरोसा  इस  मौसम  में
क्या  भरोसा   अब  अजाब  का


कल  सूरज  की  किरणों  को  समेटना  है
तो  ख्वाब  को  नींद  बख्शनी  होगी
आज  जिस  तरन्नुम  को  सिखा  है फिजाओं से
कल 
  किसी  ग़ज़ल  में  रखनी  होंगी 


दुआएं  ख्वाब में भी आ जायेंगी
इसका  ख्याल   हमें  भी  है
आज  चलता  हूँ  मेरे  दोस्त
कुछ  सवाल  रूह  के  भी  है 

कुछ  सवाल  रूह  के  भी  है 

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