Sunday, April 29, 2012

तू रहता कहाँ है खुदा !

जो   कभी  न  रही   क्यूँ   उसी  को  याद  करते  हैं ,
ग़म -ए -दुनिया  में  बस  हम  फ़रियाद  करते  हैं .

मुन्तजिर  हुई  आँखें  एक जश्न -ए -महफ़िल  की  ,
वक़्त  की  जंजीर  से  रूह को  आज़ाद  करते  हैं

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जब कदम जिँदगी की लड़खड़ाने लगी ,
तू ख्वाबोँ मे रंग भर मुस्कुराने लगी....

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ख्वाइशों  ने   हमें   पुकारा  बहुत  मगर
तेरे  याद  को  हमने अकेला  न  किया ...
खामोश  धडकनों  को  मिली दुआओं की आवाज़
ज़ीस्त में कोई  शोर  शराबा   न  किया  !!!

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कभी कभी लगा मुकद्दर मेरा हबीब है ,
तो पास आके जालिम ने नकाब हटा लिया !!!

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ख्वाइशों  का  तनहा  बादल , 
छूकर  तेरी  साँसों  को , 
मन  की  आँगन  में  कुछ  यूँ  बरसा  एक  रोज़  
कि अब  तो  निश दिन  
एक  प्यार  के  सागर   में  बह  रही  ये  ज़िन्दगी ..

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मैँने जब कभी जिँदगी को सजदा किया ,
जमाना मिला है रुख बदल के ! 

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सर -ए -शाम  रूह  का  कलाम  ज़र्रे  ज़र्रे  में  बिखर  गया ,
न  जाने  कहाँ  खो  गयी  बला   ग़म  जाने  किधर  गया  !!

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आ भी जा ख्वाब बन के ,जिँदगी से पर्दा उठा !
मन तो हुआ बेगाना ,तू हि राह दिखा !!

न थी कोई रंजिश न थी उससे ख्वाहिश ,
जिस्त कर रहा फिर क्योँ जफा !!

तनहा था तो बदगुमां था ,जशन मेँ बेअदा था ,
छीना क्या ,क्या था पाया ,क्या थी दिल की खता !!!

उबा उबा शहर क्यूँ ,जख्मी हर मंजर क्यूँ ,
एक बार तो बता दे ,तू रहता कहाँ है खुदा !

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दिल की सदाओँ मेँ जब कोई दुआ हो ,
तब बस रुमानियत हो पास खुदा हो !

न अपना पराया  न  हो  कोई बंधन,
जशन मेँ डूबा सारा आसमा हो !!

अँधियारे मेँ न मिले कोई रहगुजर ,
आँखो मे लेकिन प्यार का कोई दिया हो !!

गुमां हो यहि बस जो माजि को झाँके ,
कि हमने भी रब्बा एक जिंद जीया हो !!!

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सहमी सहमी सी परेशान लगती है इन दिनोँ ,
न जाने खुद से क्योँ हैरान लगती है इन दिनोँ !

पहले स्याहि मेँ भरी जाती थी रुह ओ जान ,
पानी पानी हुई बेजान लगती है इन दिनो !!

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2 comments:

  1. ख्वाइशों का तनहा बादल ,
    छूकर तेरी साँसों को ,
    मन की आँगन में कुछ यूँ बरसा एक रोज़
    कि अब तो निश दिन
    एक प्यार के सागर में बह रही ये ज़िन्दगी ..बहुत ही खूबसूरती से जिन्दगी के प्रशनो को शब्दों में ढाला है आपने.....

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