Tuesday, May 15, 2012

उग आयेंगे कागज़ पर आईने कुछ नज़्म के




कुछ फूलों की महक  से , क्या मिलेगा आपको
रूह  को  महकाइए  , खुदा   मिलेगा आपको

क्यों भला ग़फलत में किताब से  रिश्ता करें 
गीत तो  हर शक्श   से   जुरा     मिलेगा आपको

ज़ख्म पर  जब  आएगी दुआएं बन कर चाँदनी
तो दर्श में उस  चाँद  का चेहरा मिलेगा आपको

बहेंगे लहू लहू जब  जब आपके शोले चिराग
तो क्या हुआ जो नहीं ,सेहरा मिलेगा आपको

ज़ज्बात से इतर अगर कोई महल बनाइये 
उम्र भर एक अजनबी कमरा मिलेगा आपको


उग आयेंगे कागज़ पर आईने कुछ नज़्म  के  
उसमे ही इस रूह का, मुखरा मिलेगा आपको


जिस लिफ़ाफ़े को खोलते नहीं हो आज "नील "
वो लिफाफा एक दिन, ढूंढ़ता मिलेगा आपको



Saturday, May 12, 2012

न रकीब है कोई न हि दुश्मनी बेवजह


न  रकीब  है  कोई  न  हि  दुश्मनी  बेवजह 
क्यूँ  किसी  बद  ख्याली  में  रहे   आदमी  बेवजह 

हमें  तो  आती  है  रास    बस  दुआ   की  आफताब 
हमें  न  बुलाओ   पास अब  चाँदनी  बेवजह 

मुस्तकबिल  हो  जाए  रोशन , सिख  ले  माजी  से 
न  बीते  दोपहर  युहीं ,  न  यामिनी  बेवजह 

कुछ  रिश्ते ,नज़्म  गीत  , घर  बार  की  खुशियाँ 
मिल  जायेंगी  ईमान  से  ,क्यूँ  बेबसी  बेवजह 

देखो  वो  सूरज  भी  कर रहा   है  मटरगस्ती  
करता  नहीं  है,  ये  दिल -ओ -जान  भी,  आवारगी  बेवजह 

मुबारक  तेरे  होठों  पे  होंगी  नज़्म   की  साँसे 
जाया   न  होगी  "नील " की  दीवानगी  बेवजह 

Tuesday, May 8, 2012

अर्श पे टंगे ख्वाब



स्याह रात ,अर्श पे टंगे ख्वाब ,
मैं और मेरी अधलिखी किताब  
कुछ पहेलियाँ ज़िन्दगी की 
कुछ मासूम जवाब

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सुरूर जब होने लगे अपने वजूद का 
तब आंधियां आती हैं इम्तेहान को
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उम्मीद जब हंसने लगे खुदाई पर तब जागना जरूरी है 
जब यकीन न हो खुद की परछाई पर तब जागना जरूरी है


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क्षण भर का प्रेम भी तेरा जैसे झील की गहराई है 
जीवन के भंवर में उसने हर पल लाज बचाई है
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एहसासों को देखते हैं ,एहसानों को याद रखते हैं 
हम रब की इन्ही तोहफों से खुद को आबाद रखते हैं

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बेशक रब्बा मेरे चाँद में भी दाग है ,
मगर वो अमावस में छुपता नहीं ........

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ए सफ़र ज़िन्दगी की ,ए बशर ज़िन्दगी की ,बता तेरा इरादा क्या है 
मैं तो चल ही रहा हूँ तेरे साथ ,और मेरा ,ठिकाना क्या है

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तुझसे न जाने क्यूँ राबता हो गया 
न जाने क्यूँ ये सिलसिला हो गया 
मेरे रूह से क्यूँ आवाज़ आने लगी 
तू ही सफ़र में छाँव तू ही हौसला हो गया
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आज इक पुराना ख़त मेरे पुराने संदूक से मिला 
ज़िन्दगी ने उसे पढने का मौका तक न दिया   
खोला तो कुछ नहीं लिखा था
कुछ एक तश्वीर उभर आई थी उस पर 
शायद आंसू मोती बन चुके थे ....

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कुछ लम्हे बहुत याद आते हैं , 
बस जाते है दिलों में , ज़ख्मो पे मरहम लगाते हैं ..... 
उन्ही लम्हों को समेटा है अपने एहसासों में समायें हैं 
वो लम्हे मेरे अपने हैं मेरे साथी ,मेरे हमसाये हैं
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कुछ एक पल की ज़िन्दगी है ,कुछ सपने हैं ,कुछ उलझन भी 
कुछ रिश्ते मिलते है दिल से ,कहीं तरसे दिल की धड़कन भी
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मेरे पैमाने में शराब कहाँ ,वो तो बस ,कुछ धडकनों को समेटे हैं 
कुछ दूरियां मिट जाती हैं ,मेरे माजी ,मेरी दुनिया ,मेरे रिश्तों को समेटे हैं

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हर मोड़ पे सहारा  ढूंढता नहीं , सहारे की आदत न हो ,दुआ करना 
न चाहता हूँ की तू परेशान रहे ,जागना सही ,नहीं रतजगा करना

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कुछ अपने कुछ दूजों के ख़्वाबों के साथ
ये ज़िन्दगी कट जाए बस कुछ एहसासों के साथ

Sunday, May 6, 2012

तुझसे पहचान हो मेरी


जैसे एहसासों से बनी कोई तश्वीर हो
किसी दरवेश की बंदगी -ओ -ज़मीर हो

मेरे गुरबत्त में भी चिराग जलता रहे
"माँ " तुझसे पहचान हो मेरी , तेरी तौकीर हो

Wednesday, May 2, 2012

शायरी

ज़िन्दगी ऐसी ही है यहाँ  मिटटी का रंग नहीं बदलता 
सूरत बचाने में  इंसान अपनी शीरत भले बदल  दे 
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गुफ्तगू होती थी जब भी तेरी मैंने सुना था गौर से 
मालूम था  कि मेरे नसीब में तेरी मुहब्बत नहीं होगी 
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चाँद बेदाग़ नहीं पर फिर भी क्यूँ उसी कि बात है 
हम भले ना हो सके आपके ये ग़ज़ल तो साथ हैं 
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जब आये मायूसी तो मेरे तश्वीर से गुफ्तगू करना 
तुम  गम से नहीं अपने रूह से ही रू-बा -रू होना 
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जन्म तो फिर लेंगे दुनिया में ,पर मुहब्बत हो न हो 
दर्द-ए-दिल का ये शबब और तेरी ज़ीनत हो न हो 
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खुशबू बाँटते बाँटते बागवान  की अब  शाम हो गयी 
पर उसे गम है कि सुबह गुलशन को पानी कौन देगा 
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डालियों पे  लगे पत्ते सूरज को निगलते हैं 
तभी तो रोज़ हम घर से ख़ुशी में निकलते हैं 
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जलते जलते जल गया पर वो नहीं आये 
इक ख़त भी आया तो ज़माने ने जला दिया 
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तुम्हारे पास हमें भूलने के बहुत तरीके हैं 
पर हम आज भी तुम्हारे ही गम में जीते हैं 
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पथराई आँखों में प्यार है किसका 
सब चीज हार ,इंतज़ार है किसका 
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चेहरे पढ़कर थक गए ,हर मोड़ पे सनम 
रूह को जाना होता तो राहें मिल जानी थी 
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रंग भरे जो जीवन में वो सपने जाने कहाँ गए ,
वो महफ़िल ,बचपन ,अल्हड़पन ,सब अपने जाने कहाँ गए ...

खुदा

 
जब कभी कोई दुआ तेरी पायी तो ,बस खुदा देखा
जब कभी घर की चिट्ठी आई तो , बस खुदा देखा

बस ख्वाब ही थे रूबरू तेरा दर्श कहाँ था
जो ख़्वाबों में तू समाई तो ,बस खुदा देखा

सुर थे मगर घटाएं ,बिजली ,पंछी के सिवा क्या ?
बजी तेरी प्रीत की शहनाई तो बस खुदा देखा

कई पन्ने पलटे मगर फिर भी रहे बेचैन
पढ़ी "हरिवंश " की रुबाई तो बस खुदा देखा

कभी फाकाकशी तो कभी दो कोर मिले परदेश में
माँ ने अपने हाथ से खिलाई तो बस खुदा देखा ..

उखरी उखरी नाराज़ है आज की रात


उखरी उखरी नाराज़ है आज की रात ,
बिन तेरे दर्श बे -अल्फ़ाज़ है आज की रात


ऊँचे ऊँचे गगन से सपने हैं मगर
एक अनसुनी सी नियाज़ है आज की रात 


खो गया मेरा वजूद मेरे सायों में
किसी और की ही मिजाज़ है आज की रात


धड़कने ,साँसें ,हि हैं इस रूह के लिए
तन्हाइयों की साज है आज की रात


कहती है मैं फिर आउंगी सूरज ढले
जाने कितनी सरफ़राज़ है आज की रात .....
 
 

Tuesday, May 1, 2012

दर्श के वास्ते

दर्श   के  वास्ते  उनके  क्षितिज   को  ताकते  हैं  हम 
सारी  रात  तनहा  ही  अकेले  जागते  हैं  हम 
पर  बादलों  का  सितम  देखो  आसमान  को  ढक  देता  है ...........................................

कोई आदतन ग़म के पैमाने नहीं भरता

इस   ज़िन्दगी   में  अब कोई  जुस्तजू  न  रही ,
मैं  ही   बदल   गया   या  तू  तू   न  रही ..

जिसने  की  थी  हिमायत  उसकी   सादगी  की
उस  इंसान  की  इस  शहर   में  आबरू   न  रही ...

रस्ते  सारे  वहीँ  रहे  मंजिलें  भी  वहीँ
सफ़र  करने   की  ही  कोई  अब  आरज़ू   न  रही ...

कोई  आदतन  ग़म  के  पैमाने  नहीं  भरता ..
मगर  क्या  करें   की  शराब   में  वो  खुशबू  न  रही

कितने पूनम बीत गए


खिड़कियाँ  बहुत  हैं  उस  नीचले  मकान  में 
दीदार-ए-चाँद  के  लिए  सारे  इंतज़ाम  है 


मगर  उपरी  मकान  के  वासिन्दों  से  मुलाक़ात  हुए  कितने  पूनम  बीत  गए ..

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...