Saturday, May 12, 2012

न रकीब है कोई न हि दुश्मनी बेवजह


न  रकीब  है  कोई  न  हि  दुश्मनी  बेवजह 
क्यूँ  किसी  बद  ख्याली  में  रहे   आदमी  बेवजह 

हमें  तो  आती  है  रास    बस  दुआ   की  आफताब 
हमें  न  बुलाओ   पास अब  चाँदनी  बेवजह 

मुस्तकबिल  हो  जाए  रोशन , सिख  ले  माजी  से 
न  बीते  दोपहर  युहीं ,  न  यामिनी  बेवजह 

कुछ  रिश्ते ,नज़्म  गीत  , घर  बार  की  खुशियाँ 
मिल  जायेंगी  ईमान  से  ,क्यूँ  बेबसी  बेवजह 

देखो  वो  सूरज  भी  कर रहा   है  मटरगस्ती  
करता  नहीं  है,  ये  दिल -ओ -जान  भी,  आवारगी  बेवजह 

मुबारक  तेरे  होठों  पे  होंगी  नज़्म   की  साँसे 
जाया   न  होगी  "नील " की  दीवानगी  बेवजह 

5 comments:

  1. खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....

    ReplyDelete
  2. @कुछ रिश्ते ,नज़्म गीत , घर बार की खुशियाँ
    मिल जायेंगी ईमान से ,क्यूँ बेबसी बेवजह

    - क्या खूब कही है!

    ReplyDelete
  3. बेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना, शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
  4. shushma ji,
    anurag ji

    indian darpan ji

    aapke sneh ka aabhaari hoon
    shukriya

    ReplyDelete
  5. कुछ रिश्ते ,नज़्म गीत , घर बार की खुशियाँ
    मिल जायेंगी ईमान से ,क्यूँ बेबसी बेवजह

    वाह..................

    बहुत खूबसूरत....

    अनु

    ReplyDelete

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...