Monday, March 25, 2013

बात अब बेसबब नहीं होती


पहले होती थी अब नहीं होती
बात अब बेसबब नहीं होती

इससे बिछड़ा तो तीरगी को जाना
घर के आंगन मे शब नहीं होती

रस्म-ओ-राह दुनिया के खिलौने है
यहाँ तो , कोई अदब, नहीं होती

हर इक तमन्ना बुझ जाती है
यहाँ आकर के तलब नहीं होती

वो हुनर भी  तब खो जाती है
जूनून दिल में जब नहीं होती

घर से लौटे न  कोई "नील" कभी  
ये ख्याल दिल में कब नहीं होती

Saturday, March 9, 2013

इक सोच बुझ गया है ,इक ख्वाब बाकी है


हर डगर हर रास्ता, हाज़िर जवाबी है 
आईना हैरान है ,चेहरा किताबी है !

क्यों नहीं सुने है ,आह-ओ-फ़रियाद 
क्या खफा मुझसे, मेरा खुदा भी है ?


जो हमें कहते रहे थे हुनर वाला
उनकी अदालत में ही ,अब हुनर वादी है !

जाते जाते देखते जाना मेरी दहलीज़
हमने चौखट पर दीपक जला दी है

जब आप रुख को देख के मिजाज़ भाँप लें
तो भला न होने में भी क्या खराबी है ?

मेहनत से संभाला है इक फूल को अब तक
कि पंखुरी अब भी नयी सी है ,गुलाबी है

कहना कि जियें शायरों से बिना ग़ज़ल
ये तो जनाब उन पर बहुत बेनियाज़ी है

मंजिल पे पहुँच कर देखा है अपना हश्र
दरवाज़े पे ताला है ,न कोई चाभी है

मोहरा बना के देते हैं दिलासा निजाम का
जलवागरों की भला ये कैसी बाज़ी है

क्या ये चर्चा है ज़रूरी ,क्या चीज़ किसकी है
क्या ये कम नहीं कि जो है आधी-आधी है

काग़ज़ कलम दवात का बंदोवस्त कर दो
है शौक़ स्याही से भरूँ ,तश्वीर सादी है

गर बूँद भर ख़ुशी मिले ,सागर को भुला दूँ
क्या फ़िक्र फिर ग़म-ऐ-हयात बेमियादी है

कल खिलौना टूटने का ग़म ही नहीं था
बचपन छिना जब से, ये दिल एहतियाती है

जाते जाते सोचते जाएगा फिर राही
इक सोच बुझ गया है ,इक ख्वाब बाकी है

ये लहू कतरा नहीं है आतिश है इसमें "नील"
है राख का कुनबा ये जिस्म,इंकलाबी है 

*****
वादी : one who pleads for something
बेनियाज़ी :cruelty
बेमियादी :limitless
हयात :life
एहतियाती :taking precautions
निजाम:power,rule
आतिश :fire

Sunday, March 3, 2013

इंतज़ार-ए-शाम में हम सुबह को भूल गए


इंतज़ार-ए-शाम में हम सुबह को भूल गए 
कटघरा ,मुंसिब और जिरह को भूल गए 

याद रह गया उन महफिलों का दौर बस 
और इस दुनिया की हर जगह को भूल गए 

अपना भी अंदाज़-ए-ज़िन्दगी का था अजीब 
आपको भूलने की हर वजह को भूल गए 

आशनाई थी ही ऐसी जब मिले खुल कर मिले 

रस्म-ओ-रिवाज़-ओ-दूरियां हर गिरह को भूल गए

"नील" अपनी धुन में हम ग़ज़ल लिखते रहे
होने वाले हादसे और हर गिलह को भूल गए 

*******************************
गिलह: blame
जिरह:proceedings in court by a lawyer
मुंसिब :judge
आशनाई : love
गिरह :बन्धन

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...