Sunday, May 12, 2013

कुछ मुझको भी भान हुआ है




उर में मधुस्वप्न ,सिंचित  होगा 
आह्लादित तब ,शोणित होगा  


काव्य तब ही समुचित होगा 
जब मन तक आरोहित होगा


पूछो क्या  अवशोषित होगा 
और क्या कुछ प्रतिविम्बित होगा !


एक ज्वलंत है  प्रश्न निरंतर 
क्या सब कुछ प्रायोजित होगा ?


कुछ मुझको भी भान हुआ है 
आभास तुम्हे भी किंचित होगा !


वो दो  कदम न चल पायेगा 
स्वयं से ही जो पराजित होगा  ! 


कैसा है कोई ,दुःख में देखो 
सुख में सब  अलक्षित होगा !


मैं ढूंढूं वो जगह, हो व्याकुल 
जहाँ "मैं" भी तिरोहित होगा


मेरी अपनी नगरी  भी होगी 
कोई राजा न पुरोहित होगा 


सिन्धु नहीं पर ,पथिक भर पानी 
कुछ बूंदों से ही, संचित होगा 


"नील" नयन भी सब कहते हैं 
उनमे गगन समाहित  होगा 

***
उर :heart
आह्लादित :happy
शोणित :blood
समुचित :right
अवशोषित :absorbed
प्रतिविम्बित:reflected
किंचित :somewhat
अलक्षित : unnoticed
तिरोहित :disappear

Sunday, May 5, 2013

ए खुदा !क्या हो गया ?


जहान -ए-फिरदौस का अब कोई भरम ना दे 
ए खुदा !क्या हो गया ?, कि दर्द कम ना दे ?


दो पल में बदल जाए ,बस वो मौसम ना दे 
ये कब किया था पैरवी की हमको ग़म न दे 

तू न बता कि कितने काँटे हैं राहों में 
जा आज़ाद किया तुझको , कोई मरहम ना दे 

शेख, रोक मस्जिद में हमें जाने से लेकिन 
ये तो बहुत ज़ुल्म है , जो तू कलम ना दे 

ये ज़िन्दगी बस साँस लेना भर तो है नहीं 

गर तू खुदा है, सुन ,ऐसी साँसों को दम ना दे

मैं सोचता हूँ कैसे कोई खुद को समझेगा
तू उलझने ना दे ,अगर रंज-ओ-अलम ना दे

हाँ कोई नहीं तू तोड़ अब रोज़ कुछ हिस्सा
मेरे ख्वाब को एक दम से, मौला !अदम ना दे

निकले मगर कलम से स्याही की कुछ बूँदें
है जीस्त एक इम्तेहाँ ,तू आखें नम ना दे

चलता है ए खुदा तो चल काफिर के साथ तू
यूँ साथ अपने "नील" का बस, दो कदम ना दे 


****
फिरदौस :heaven
अदम :annihilation,destruction
अलम :व्यथा
जीस्त :life
काफिर :atheist

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...