Thursday, August 8, 2013

रस्ता दिखाए हम

हर  वक़्त  आरज़ू  रहेगी  ..की  लौट  आयें  हम 
रूह  से   लिखी  नगमों  की  माला  बनाए  हम 

ज़माने  की  हर  रंग  से  हम  खेल  ही चुके  हैं 
आज  सतरंगी  सपनो  की  दुनिया  बसाए   हम 


जब  मन  में  ही  है  इश्वर  का  ठौर  दोस्तों 
तो  बेवजह  मंदिर  भला   क्यूँ  जाए  हम



फिर  आये  न  आये  ये  रुत  गाने  बजाने  की
आज  फिर  इक   खुशनुमा   नगमा  सुनाये   हम 



कोई  राहगीर  थक  न  जाए  इस  ज़माने  में 
उसको  भी  मंजिल  का इक  रस्ता दिखाए  हम 







2 comments:

  1. बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
    अभिव्यक्ति.......

    ReplyDelete

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...