Tuesday, September 9, 2014

yun zuda sa na raha karna kabhi


यूँ  जुदा  सा  न   रहा  करना  कभी   मुहब्बत  में 
कोई  हसीं  ग़ज़ल  ही  कहना  गम -ए -फुरकत  में 


गुल के  खिलने  पे  ज्यूँ   बागवां  खुश  होता   है 
वो  खुशी नहीं है मुमकिन किसी भी शोहरत  में 


कुछ  दुआएं ,कुछ  यादें,  संग   रह   जाती  हैं 
जानशीन तो  मौजूद  रहती  है  हर   मन्नत  में 


ये  लहरें  ही  मांझी  की  रहनुमा   हैं  नील 
दर्द  ही  है  तेरी  दवा ,न  रहना तुम  गफलत   में 


गर  मंज़ूर  है  कि  तन्हाई  ही  तेरी  मंजिल  है  
तो  है  ये  हुस्न -ओ -वफ़ा   तेरी  खिदमत  में  

4 comments:

  1. गुल के खिलने पे ज्यूँ बागवां खुश होता है
    वो खुशी नहीं है मुमकिन किसी भी शोहरत में ..
    सच है की निर्माण की, सृजन की ख़ुशी से बढ़ कर कुछ नहीं होता ....

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