Sunday, February 22, 2015

राजदार

खामोशियों का राजदार कौन है 
मेरी तरह ही बेकरार कौन है 

हो जाए रौशन ये मेरी दास्ताँ 
वो खूबसूरत किरदार कौन है 

जब हम नहीं तो अब बोल दें 
फिर आपका तलबगार कौन है 

आ कर कलम ने ज़ख्म भरा 
गम में मेरा साझीदार कौन है

कभी तेरा ख़त,तो कभी तश्वीर
परदेश में गमगुसार कौन है

आओ दिया हम जलाते चले
फिर सोचेंगे,समझदार कौन है

2 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (24-02-2015) को "इस आजादी से तो गुलामी ही अच्छी थी" (चर्चा अंक-1899) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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