Friday, January 1, 2016

शाख   के बिखरे पत्तों के नीचे जो सुखी ज़मीन है,
 वो छुप गयी है 
पर सब को पता है की अकाल आया था अबकी  मौसम ......

समेट लो इन पत्तों को माली ...
घर पर चूल्हा आज की रात तो जल ही जाएगा .....
ये शाख तो हर मौसम साथ निभायेंगे .........

पूछना  उस चौधरी से जो तुम्हारे गाँव में नयी नयी चिमनिया लगवा रहा है .....
अब जब हरे भरे जंगल कंक्रीट के काले महलों में तब्दील होंगे तो फाका करना होगा न...तुम्हे ही....
उनकी रसद आ जायेगी परदेश से ....

एक वृक्ष अपने जन्मदिन पर ज़रूर लगाएं हम सब ....

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...