Saturday, February 27, 2016

हमें चलना था

जो ठीक लगता है कह देते हो 
जैसे शतरंज हो ,और शह देते हो 

क्यों छीन लेते हो तुम रात को 
जब रोशनी  तुम सुबह देते हो 

हमें चलना था ,हम चलते रहे 
तुम पथरीली सतह देते हो 

मैं   भूल जाऊँ ,तुम्हे परवाह नहीं
पर याद रखने की वजह देते हो

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (28-02-2016) को "प्रवर बन्धु नमस्ते! बनाओ मन को कोमल" (चर्चा अंक-2266) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुंदर लिखा है

    Hindi Shayari

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