Monday, April 25, 2016

आईना

एक  सा नहीं दिखता चेहरा हर आईने में
पाया है रंग और भी गहरा हर आईने में

रोको नहीं सफर कि सहरा बहुत बड़ा है ,
देखा किया बहुत है ,पहरा हर आईने में

वो  टुकड़ा तुम्हारे दर्श में ही,होगा कहीं छुपा
नादाँ हो ढूंढते हो वही टुकड़ा  हर आईने में

7 comments:

  1. आपने लिखा...
    कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 26/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
    अंक 284 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।

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  2. Dhanyvaad kuldeep ji,bahut aabhaar mayank daa

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  3. नीलाशं की आइना सैकड़ों अर्थ संजोये कविता,आपने चुन कर सराहनीय साहित्य सेवा में हैं ।

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  4. Kamlesh ji,digambar ji,rashmi ji ,mahesh ji aap sabhi ka bahut aabhaar

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