Saturday, May 7, 2016

चुपचाप


कह रहे हैँ हर घड़ी हम आपसे गज़ल ,
हम ही चुप हैँ या हैँ चुपचाप से गज़ल

है दश्त के  सफर या मिलाप से गज़ल ,
हम साज बन गये ,हैँ आलाप  से गज़ल

हो जाए मायूस सा बाजार में हर शख्स ,
खुश हैँ कि मिलते नहीं हैं नाप से गज़ल

है तमाशाई हर शायर ,हर महफिल ,
देखें हैँ नजदीक से ,माँ बाप से गज़ल

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (09-05-2016) को "सब कुछ उसी माँ का" (चर्चा अंक-2337) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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