Thursday, May 5, 2016

ग़ज़ल

सहरा की तपिश में हरे जंगल क्यूँ लौटे
बरसात की ख्वाहिश न थी ,बादल क्यूँ लौटे

पूछा नहीं की बिना ग़ज़ल क्यूँ लौटे ,
लकिन बाज़ार से बिना चावल क्यूँ लौटे

शहरों में आ रही है लहर कितने वाइजों की ,
न गिनिए की गाँव में कई पागल क्यूँ लौटे

जाते हैँ आप किस तरह,आते हैँ फिर कैसे
घुड़सवार थे भले मगर पैदल क्यूँ लौटे

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