Monday, March 13, 2017

रँग

चुपचाप   सा  रह  जाना ,आपके  मामूल  क्यूँ  हैँ ,
जो  सब  होता  हो  ये  आपको  माकूल  क्यूँ  हैँ

किस  रँग  के  उतर  जाने  की  बात   करते  हैँ ,
रँग  देखने  में  भला इतने  मशगूल  क्यूँ  हैँ

कितनी  नज़्मों  में  हमारा  ज़िक्र  आया  था ,
बस  चंद  हर्फ़  हि  आपको   मक़बूल  क्यूँ  हैँ

ये  तो  पाँव  के  निशाँ  थे  दौर -ऐ -सफर  में , देखिए ,
फिर  नज़रिये  में  ये  रास्ते  के  धूल  क्यूँ  हैँ

अजूबे

पानी के रँग में डूबे हैँ ,कौन पहचाने
सब सफर में हैँ और  ऊबे हैँ ,कौन पहचाने

चंद गलियों के अफ़साने ,सुनाया करते
इस जहाँ में क्या अजूबे हैँ ,कौन पहचाने

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...