Monday, November 25, 2019

गहराई

एक टूटे हुए पत्ते ने जमीं पायी है ,
जड़ तक पहुंचा दे ,ये सदा लगायी है !

सादा कागज है मुंतज़िर कि आये गजल
क्या कलम में  हमने भरी रोशनाई है ?

झील में मारकर पत्थर न दिखाओ सागर
झील की सादगी भी हमको रास आयी है !

हर तरफ आईने ,हर आईने में कई चेहरे,
किस चेहरे में जी ने सुकूं पायी है  ?

वो तो है रोशनी जो हो तो है सबकी आन
कभी कह दो उसे पर्वत या कहो राई है !

ठुकराऊँ खुद "नील" की कई गहरी बातें
नीले सागर से ही पायी ये गहराई है !

8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 25 नवम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आपका बहुत आभार यशोदा जी रचना को स्थान देने हेतु

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (26-11-2019) को    "बिकते आज उसूल"   (चर्चा अंक 3531)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    1. आभारी हूँ आपका मयंक दा चर्चा मंच में स्थान देने हेतु

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  3. झील की सादगी ही रास आई है ...
    बहुत खूबसूरत शेर हैं ... लाजवाब ....

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  4. वाह शानदार गज़ल...हर बंध लाज़वाब।

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    1. आपका शुक्रिया श्वेता जी

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