Thursday, December 5, 2019

हिम

हिम की सतह सा है ये मन देखो
टोह  लेता ही रहे ये निर्वहन , देखो

फिर पिघल रहा है ओ  मेघों इसे सम्भालो
फिर भी चलता रहे आवागमन ! , देखो

दो बूँद पानी के स्वपन के लिये अब
हिम के शिखर का वो पतन ! , देखो

एक शीतल श्रोत सिंचित किया कर  जतन
हो रहा गंगोत्री का अवतरण , देखो

ये हिम शिखर आज सिंधु में मिला है
क्या तेज जा रहा है वो निमग्न , देखो

"नील" नभ के ओलों में भी प्रीत रस समायी
आज इस विराट हिम से मिलन देखो


1 comment:

  1. बहुत धन्यवाद आपका यशोदा जी

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