Wednesday, April 24, 2013

हम हैरान है उनकी दिल्लगी और हद देख कर


क्या छोड़ दूँ अब सफ़र ,कम रसद देख कर 
आसमाँ नहीं छुआ जाता ,अपना कद देख कर 

पंछी कहाँ रुकते हैं कभी सरहद देख कर 
हम हैरान है उनकी दिल्लगी और हद देख कर 

इक करार सा आया था तब मदद देख कर 
टूटा है दिल कुछ और ही मकसद देख कर 


बागवाँ तो खुश है बाग़ को गदगद देख कर
तूफाँ मगर खुश होगा ज़मीन-ओ-ज़द देख कर

मुश्किल है निभ जाना ,बहुत कठिन है रस्ता
आप कीजिएगा ,कोई भी ,अहद देख कर

ऐसा नहीं है कि कोई करे क़र्ज़ से तौबा
ले क़र्ज़ मगर खुद की आमद देख कर

खुद को अब पस-ए-आईना बिठा कर देख लें
तब यकीन सा हो जाएगा शायद देख कर

क्या दौर अब आ गया है कि शहर भर में
मिले आदमी को दाखिला बस सनद देख कर

देखना तो है अभी "नील" गगन के कई रंग
क्यों बैठ गए बस एक दो गुम्बद देख कर 

***
अहद :promise
सनद :प्रमाण लेख ,दस्तावेज

Saturday, April 6, 2013

फुर्सत के दिन चार ढूँढे ना मिले

 


फुर्सत के दिन चार ढूँढे ना मिले
सहरा में कभी बहार ढूँढे ना मिले

बचपन तो अब भी दिख जाए लेकिन
बचपन के वो यार ढूँढे ना मिले

खबरों की बाजारी होती रहती है
पर सच्चे अखबार ढूँढे ना मिले

तब सड़क के दोनों और दीखते थे दरख़्त
अब उनके कोई कतार ढूँढे ना मिले

मकतब में दानिश हमको लेनी थी
ढूँढा कई कई बार ढूँढे ना मिले

हम करते किसका इन्तिखाब यारों
अच्छे उम्मीदवार ढूँढे ना मिले

माना हैं अज़ीज़ बहुत कम अपने यारों
शहरों में अगयार ढूँढे ना मिले

ग़ालिब,मीर-ओ-फैज़ लिख गए अपने शेर
फिर वैसे कुछ असरार ढूंढें न मिले

"नील" ने मकाँ किया दीवान को अब तक
इस घर में दीवार ढूँढे ना मिले


***
सहरा :desert
दरख़्त :tree
मकतब :school
दानिश :knowledge
इन्तिखाब :choice
अगयार :rivals
शेर :couplet
असरार :couplets
दीवान :collection of poems

Thursday, April 4, 2013

कुछ तो गौर करो

कुछ  समझो  ,कुछ  तो गौर करो  
कोशिश  यारों   तुम  और  करो  


लाल  न  हो  जाए  धरती  कहीं 
आओ  चम्बल  को  चित्तौड़  करो 


रास्ता  मिल जायेगा  तुमको  भी 
चलो  फिर   से  शुरू  दौर   करो 


जो  फर्क  करते  हैं  रंगों  में यारों 
तुम  उनको  न  युहीं  सिरमौर  करो 


साहिलों  पे  न  बैठ  गिनो  कश्ती 
लहरों  पे  जाकर  अब  ठौर   करो 

Monday, April 1, 2013

चले आओ न हमसफ़र !

चले   आओ   न   हमसफ़र , आज मन   उदास   है 
हमें   पता   है   तू   यहीं कहीं   आस - पास   है!!  

तेरे   न  होने   से  गुलशन   गुल से मरहूम हो गया
क्या तुझे इल्म नहीं यारा  कि ,तू   कितना  ख़ास  है !!

शहर  में  ज़िन्दगी  की  ज़द्दोज़हत  बहुत है
यारा ,कोई  डर  नहीं  ,जब  संग  तेरे विश्वास  है !!

चलते  रहना  ,हिम्मत  से  ,और  पाना  मुकाम
जब  संगीत  रूह  में  है  ,तब  किसकी  तलाश  है !!

उसकी  रहमत  से  सुरमयी हो जाए हर इक सांस
हर  रूह  में  ही  कोई  मीरा,  तो कोई  रैदास  है !!

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...