Thursday, June 1, 2017

और क्या नाम दूं इस मंज़र को

















जब  तक  रहे  



किसी  का  इंतज़ार  आँखों  में
और  रहे  एक  पुकार  
खुद  की  साँसों  में
तब  तक  ही   ज़िन्दगी  
ज़िन्दगी  कहलाती   है
वरना  क्या  रखा  है 
फजूल  की  बातों  में ...

जो  तुम  नहीं  थे  
तो  तेरी  जुदाई  संग  थी
बेपरवाह  ज़माने  में  
मेरी  खुदाई  संग  थी
और  क्या  नाम  दूं   
इस  मंज़र   को
प्यार  ही  तो  है  
जो  जागता  है  सुनी  रातों  में ...

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...