Friday, January 24, 2020

रहे चाहत तो ...


जंग के मैदान के बाहर है अफवाह बहुत
कि जंग लरने को मिलते है तनख्वाह बहुत

इक छोटी सी चोंच और उसमें दो दाने
रहे चाहत तो मिल जाते हैं राह बहुत

शेख जी क्या जरूरत है पेशगी की कहें 
आपके  तस्सवुर में  खो जाते हैं गवाह बहुत

तुम जो होते हो तो लोग बदल जाते हैं
तुम जो न हो तो बढ़ जाता है गुनाह बहुत

चाँद खामोश है क्यूँकि है अमावस "नील"
सुबह   होने से पहले रात होती है स्याह बहुत

Wednesday, January 15, 2020

हासिल नहीं जो चीज उसका क्या भरम

इस अजनबी बाजार में ख्वाब देखिये
 बोझिल हुये  सवालों के  जबाब देखिये

मोड़ पे खड़े हैं लिजे राह का भी ठौर
ये शेर नापसंद तो किताब देखिये

गुणा -भाग , जोड़ और घटाव चारो ओर
अजी भूल कर अपने हर हिसाब देखिये

सुकून हैरानी कभी इधर कभी उधर
हम देखें आपको हमें जनाब देखिये

कभी देखिये मिठास के दरमियाँ रकीब
कभी नोक झोक में अहबाब देखिये

है कसक मगर ये मेरे घर की बात है
यकीं न हो तो फिर   इज़्तिराब  देखिये

कोयल की काहिली और पहाड़ सा है  जुर्म
गर चिंटियाँ करेंगी इंकीलाब देखिये

हासिल  नहीं जो चीज उसका क्या भरम
जो चीज "नील " को है पायाब देखिये


Monday, January 13, 2020

खुदा पे किसका हक है

एक खत आने की आँखों में  चमक है जी
इत्र के शहर में  इस स्याही की महक है जी

तेरा होना तो मेरे   कारवाँ  में फलक है जी
कितना पा लूँ तुझे , तू तो दूर तक है  जी

किसी मासूम बच्चे सा हो जाऊँ तो अच्छा
मेरे लहजों पे दुनिया को  खुब  शक है जी

मैं उसके सिवा और वो मेरे  बगैर  है क्या
मैं गुड़   उसके  लिये  और वो मेरा नमक है जी

बहुत से फूल, पौधे, तितलियो, भंवरों पे अना
तेरे  बागों तक आने को पथरीली सड़क है जी

कभी पूजा, कभी सज़दा ,कभी अरदास भी करें
उलझना बाद में कि खुदा पे किसका हक है जी

एक दाने के लिये भी हो  तो खुद पे ही  यकीं
"नील" जिन्दान के  हर पंछी का सबक है जी


Saturday, January 11, 2020

याद आये आदमी सा

पार जाने की कड़ी सा
बन गया है इक नदी सा

भूल के अक्स मजहबी सा
याद आये आदमी सा

तआ'रुफ़ उसका  दूर से दे
पास बैठे अजनबी सा

रुक गया तो हैसियत क्या
चमचमाती एक घड़ी सा

बात सुनने में है बच्चा
बात बोले पीर जी सा

जो दिया आँगन सँवारे
वो दिया है चाँदनी सा

मुझको देकर तख्त ऐ फाँसी
कर रहा वो खुदखुशी सा

कोई भी अपना ले बेशक़
बे बहर सी शायरी सा

खुद पहल है "नील" भी अब
कह दो तो वो आखिरी सा

Saturday, January 4, 2020

ढूँढता है तू आवाज़ फिर नया

इस तरह से बस ही अपनाया हुआ
जैसे सूरज रात को पराया  हुआ

 घास की हरियाली नहीं जाती  यूहीं
ओस दर ब दर भी गर  छाया  हुआ

क्या पता कहते किसे हैं बिजलीयाँ
मोम सा जलता है और ज़ाया हुआ

तू नदी है मैं महज़ तहज़ीब हूँ 
कुछ सदी के बाद ठुकराया हुआ

खटखटाना भी नहीं ना  दी  सदा
कब से  दरवाजे पे तू आया हुआ

तुम सजावट देखते हो लौट कर
छोड़  कर जाते  हो उलझाया हुआ

सब  झगड़ते हैं  कि वो ही हैं सही
वक्त देखे सब को इतराया हुआ

जाने किस किस मोड़ पे है सुकून
जाने किस किस राह से भरमाया हुआ

ढूँढता है तू आवाज़ फिर नया
"नील" गाये गीत फिर  गाया हुआ

Wednesday, January 1, 2020

तिनके-तिनके में छुपी है मोहब्बत राही


अदावत में कभी पत्थर न उठाया करना
एक पल में अपनों को न पराया करना !!

रहते हैं ख़ार ज्यूँ गुलाबों के हमनशीं हो कर
दिल में दर्दों को वैसे ही छुपाया करना !!

तिनके-तिनके में छुपी है मोहब्बत राही
बुलबुल के घरौंदे को न मिटाया करना !!

तश्नगी आसमां की और कोशिशें चुल्लू भर
ख्वाब डूब जायेंगे ,अश्क न बहाया करना !!

शाख इक टूट भी जाए तो गुल खिलता है
भूल कर गम तेरे ,बस इश्क निभाया करना !!

तुम मशालों को चिरागों से क्या तौलते हो
खतम होगा अँधेरा ,इक शम्मा जलाया करना !!

गुलशन महक जाते हैं जैसे गुल से "नील"
रूह को तुम भी ख़्वाबों से सजाया करना!!

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...