Sunday, May 18, 2025

नदियों का विस्तार तो देख

सागर से मिलने से पहले नदियों का विस्तार तो देख, 
मिट जाने से पहले अपने होने का आधार तो देख 

कुदरत है आँखों के आगे, कुदरत है मन के भीतर 
भूल के माजी की खामोशी, आज के ये त्योहार तो देख 

स्याह अँधेरे में कब तक ये मशाले साथ निभायेंगी 
शम्मा बन जा खुद हि फिर जीवन की रफ्तार तो देख 

ऐ राही मेरी आँखें तो, पत्थर की हो गयी कब के, 
तू अपने अंतर्मन से ,इन आँखों में प्यार तो देख 

कितनी कमियाँ हैं गजलों में, नज्मों में, छंदों में "नील" 
इनसे है रूसवाई किनको, किनको है स्वीकार तो देख

Friday, May 16, 2025

सँभाल कर रखिये


नाज़ुक है दिल सँभाल कर रखिये,

ना मोम सा इसे ढाल कर रखिये 


किन्हीं एहसासों का नाम है ग़ज़ल,

उन एहसासों को सँभाल कर रखिये


ये ग़ज़ल नहीं रहेगी उम्र भर,

ये वहम भी मत पाल कर रखिये


सबसे मुहब्बत कर रहे हैं तो, 

ना खुद को कभी टाल कर रखिए


थोडा सा ही लेकिन कभी कभी, 

अपनी लहू को उबाल कर रखिए


ऐ "नील" हो सुकून जिधर भी,

 लंगड़ वहीं पे डाल कर रखिए





नदियों का विस्तार तो देख

सागर से मिलने से पहले नदियों का विस्तार तो देख,  मिट जाने से पहले अपने होने का आधार तो देख  कुदरत है आँखों के आगे, कुदरत है मन के भीतर  भूल ...