Sunday, May 6, 2012

तुझसे पहचान हो मेरी


जैसे एहसासों से बनी कोई तश्वीर हो
किसी दरवेश की बंदगी -ओ -ज़मीर हो

मेरे गुरबत्त में भी चिराग जलता रहे
"माँ " तुझसे पहचान हो मेरी , तेरी तौकीर हो

नदियों का विस्तार तो देख

सागर से मिलने से पहले नदियों का विस्तार तो देख,  मिट जाने से पहले अपने होने का आधार तो देख  कुदरत है आँखों के आगे, कुदरत है मन के भीतर  भूल ...