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नदियों का विस्तार तो देख
सागर से मिलने से पहले नदियों का विस्तार तो देख, मिट जाने से पहले अपने होने का आधार तो देख कुदरत है आँखों के आगे, कुदरत है मन के भीतर भूल ...
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सागर से मिलने से पहले नदियों का विस्तार तो देख, मिट जाने से पहले अपने होने का आधार तो देख कुदरत है आँखों के आगे, कुदरत है मन के भीतर भूल ...
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उसके गीतों के ज्वाला ने लोहा तक पिघलाया था सोये भारत मन में भी एक नवसंचार जगाया था उसके कलम में वीरों के शहादत का प्रतिशोध था भारत माता...
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नाज़ुक है दिल सँभाल कर रखिये, ना मोम सा इसे ढाल कर रखिये किन्हीं एहसासों का नाम है ग़ज़ल, उन एहसासों को सँभाल कर रखिये ये ग़ज़ल नहीं रहेगी ...
सुंदर अभिव्यक्ति..
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