Thursday, February 1, 2018

लानी है आज़ादी गर ,फिर से वतन के वास्ते !!


बोस दिनकर की बातें अब इल्मी निशानी हो गयी
वतन पर मिटने की चाहत अब क्यों पुरानी हो गयीं!!

सरफरोशों की चहक से जो महफिलें गुलज़ार थी
आज वो दहशत-ए-कहर से पानी- पानी हो गयी !!

इंकलाबी गीत गा ,वे तख़्त-ए-फांसी पे मिटे
आज उनकी शहादतें ,क्यों एक कहानी हो गयी!!

नौजवान हिंद का क्यों मजहबों में बँट गया
ज़ाया भगत -औ- अशफाक की क्या कुर्बानी हो गयी !!

आज़ादी के जश्न मनते रहे वर्षों मगर
चंद सिक्कों में खोकर ,क्यों जिंदगानी हो गयी!!

लानी है आज़ादी गर ,फिर से वतन के वास्ते
तान दो कलम-औ-कटार ,बहुत मनमानी हो गयी !!



"नीलांश" 

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...