जैसे कि अजनबी हमारे घर में आ गये
इक दाद की उम्मीद ही नज़्म हो गयी
अशरार खुद ब खुद ही बहर में आ गये
ये हादसा ही है ,कि अब जायेंगे किधर
जो बाज़ के लहज़े कबूतर में आ गये
चलते रहे जिस तरह घर के आँगन में,
बस उसी प्यार से दफ्तर में आ गये
हर बार रहबर की तरह से मिला था "नील"
हर बार हम सय्याद के पिंजर में आ गये