रंजिशें कर रहा हूँ खुद से , ए वाईज़ तुझे बुरा कह के ,
क्यों नहीं शिव सा पी लूँ ये विष भी सुरा कह के
उसने खुद तक किया मुझे सिमित , पूरा कह के ,
तूने राह -ए - खुदा अब दे दी अधूरा कह के
दरीचा रोशन सा हुआ पंछी को जो दाना डाला ,
आता हूँ तिनकों को समेटे अब ,वो उड़ा कह के
हम है अदने से , हर नज़्म में बुलाया रहमत को तुझे ,
कोई तेरा चैन न ले "नील " इनसे जुड़ा कह के !
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