Friday, October 25, 2019

विष 

रंजिशें  कर  रहा  हूँ  खुद  से , ए वाईज़ तुझे बुरा  कह  के ,
क्यों  नहीं  शिव  सा  पी  लूँ  ये  विष  भी  सुरा  कह  के 

उसने  खुद  तक  किया  मुझे   सिमित , पूरा कह  के ,
तूने  राह -ए -  खुदा  अब  दे  दी  अधूरा  कह  के 


दरीचा  रोशन  सा  हुआ  पंछी  को  जो  दाना  डाला   ,
आता  हूँ  तिनकों  को समेटे  अब   ,वो   उड़ा  कह  के 

हम  है  अदने से  , हर  नज़्म  में  बुलाया  रहमत  को  तुझे ,
कोई  तेरा  चैन  न  ले  "नील "  इनसे  जुड़ा  कह  के !




नदियों का विस्तार तो देख

सागर से मिलने से पहले नदियों का विस्तार तो देख,  मिट जाने से पहले अपने होने का आधार तो देख  कुदरत है आँखों के आगे, कुदरत है मन के भीतर  भूल ...