Sunday, May 18, 2025

नदियों का विस्तार तो देख

सागर से मिलने से पहले नदियों का विस्तार तो देख, 
मिट जाने से पहले अपने होने का आधार तो देख 

कुदरत है आँखों के आगे, कुदरत है मन के भीतर 
भूल के माजी की खामोशी, आज के ये त्योहार तो देख 

स्याह अँधेरे में कब तक ये मशाले साथ निभायेंगी 
शम्मा बन जा खुद हि फिर जीवन की रफ्तार तो देख 

ऐ राही मेरी आँखें तो, पत्थर की हो गयी कब के, 
तू अपने अंतर्मन से ,इन आँखों में प्यार तो देख 

कितनी कमियाँ हैं गजलों में, नज्मों में, छंदों में "नील" 
इनसे है रूसवाई किनको, किनको है स्वीकार तो देख

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 20 मई 2025 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. धन्यवाद आप सभी का

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नदियों का विस्तार तो देख

सागर से मिलने से पहले नदियों का विस्तार तो देख,  मिट जाने से पहले अपने होने का आधार तो देख  कुदरत है आँखों के आगे, कुदरत है मन के भीतर  भूल ...