तुम्हारा प्रेम
उस किताब के पन्नो जैसा है
जो
अलग होते जाते हैं
क्रमश एक दुसरे से
पढने के क्रम में
पर भरते जाते हैं
दो अक्षर जीवन को जीने के
अपने पाठकों के मन
में ...
तुम्हारा प्रेम
उस
किताब के पन्नो जैसा है
जो तिरस्कृत
होने के बाद भी
आपस में जुड़े रहते हैं ...
और
बताते हैं कि
ज़मीन से जुड़े रहो
हर मुसाफिर को ...
तुम्हारा प्रेम
उस खाली
कापी के जैसा है
जो
अपने न भरने
तक मेरे कलम के
स्याह के उन्मुक्त बौछारें
और
उसके
नीब के चोटों को
सहता रहता है ....
और फिर उस कलम को
बिना बोले मान दिलाता है ...
तुम्हारा प्रेम
उस शहद के जैसा है
जो
मधुमक्खी को पहचान देती है
उसके उद्यम के कारण
उसके सदभाव के कारण
न क़ि
उसके दर्द देने वाले डंक के कारण ...
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