दिन प्रतिदिन हर पल हर छीन
है प्रयत्न शील ये मन उद्दिग्न !!!
गाता है कुछ ताने -बाने
जीवन के खुशियों के खजाने
ढूँढता है आस पास
बस ख़्वाबों के बिखरे तृण
है प्रयत्न शील ये मन उद्दिग्न !!!
है नीर बनाना मधुवन सा
न हो वो व्यर्थ कंचन सा
पथिकों को जो आश्रय दे
उन्हें जीने का दृढ निश्चय दे
खुशबू को जो वहां खिंच लाये
ऐसे तितलियों का बसेरा हो
हो जाऊं मैं विरक्त मुक्त
इस जग बंधन से उऋण
हो जाऊं मैं विरक्त मुक्त
इस जग बंधन से उऋण
है प्रयत्न शील ये मन उद्दिग्न !!!
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