Sunday, February 22, 2015

है प्रयत्न शील ये मन उद्दिग्न !!!

दिन  प्रतिदिन हर पल हर छीन 
है प्रयत्न शील ये मन उद्दिग्न !!!

गाता है कुछ ताने -बाने 
जीवन के खुशियों के खजाने 

ढूँढता है आस पास 
बस ख़्वाबों के बिखरे तृण

है प्रयत्न शील ये मन उद्दिग्न !!!

है नीर बनाना मधुवन सा 
न हो वो व्यर्थ कंचन सा 

पथिकों को जो आश्रय दे 
उन्हें जीने का दृढ निश्चय दे 

खुशबू   को जो वहां  खिंच    लाये  
ऐसे तितलियों का बसेरा हो 


हो जाऊं मैं विरक्त मुक्त 
इस जग बंधन से उऋण 

है प्रयत्न शील ये मन उद्दिग्न !!!









No comments:

Post a Comment

नदियों का विस्तार तो देख

सागर से मिलने से पहले नदियों का विस्तार तो देख,  मिट जाने से पहले अपने होने का आधार तो देख  कुदरत है आँखों के आगे, कुदरत है मन के भीतर  भूल ...