अक्सर वो झांकता है
और साथ में
कुछ छुपे हुए समस्याओं से
भी अवगत कराता है
जब अँधेरे कमरे में बैठे हुए
पुराने कागजों पर
अपनी व्यथा लिखता हूँ
धीरे धीरे मन की समस्याओं से
परिचित हो जाता हूँ
समाधान भी मिल जाता है
ठीक उसी तरह जैसे बंद कमरे में पड़ी धुल
उसके आने से स्पष्ट दिखाई दे जाती है
मेरे खिड़की खोलने के बाद
और घर की सफाई करने को इंगित करती है ..
वो रौशनी सूरज की
और मेरे कलम की स्याही ....
दोनों कभी कभी एक से लगते हैं ...