Tuesday, April 26, 2011

वो रौशनी सूरज की और मेरे कलम की स्याही ....

अक्सर वो झांकता है 
और साथ में 
कुछ छुपे हुए समस्याओं से
भी अवगत कराता है 

जब अँधेरे कमरे में बैठे हुए
पुराने कागजों पर 
अपनी व्यथा लिखता हूँ 
धीरे धीरे  मन की समस्याओं से
परिचित हो जाता हूँ 
समाधान भी मिल जाता है 

ठीक उसी तरह जैसे बंद कमरे में पड़ी धुल
उसके आने से स्पष्ट दिखाई दे जाती है 
मेरे खिड़की खोलने के बाद 
और घर की सफाई करने को इंगित करती है ..

वो रौशनी सूरज की 

और मेरे कलम की स्याही ....
दोनों कभी कभी एक से लगते हैं ...


जब प्रकृति अपने चमत्कारों से रूबरू हमें कराती है

 पत्ते पर  परे ओस की बूंदे
मोती नहीं होती 
पर किसी पपीहे ,किसी भौरें 
की प्यास बुझा सकती है 

किसी राहगीर को जीवन दान 
और स्फूर्ति  दे सकती है 

मोतियों के  माला की 
कीमत नगण्य हो जाती हैं 

जब प्रकृति अपने चमत्कारों से 
रूबरू हमें कराती है 

जौहरी मोती की  पहचान कर सकता है 
सुख सुविधा से संपन्न वो 
उसकी  कीमत का अनुमान कर सकता है 

पर प्रकृति सर्वथा अनमोल है 
उसकी शक्ति निरंतर एवं अविरल है 
उस की महिमा का  वो थका हारा पथिक ही 
बखान कर सकता है 




ओ दूर से टिमटिमाने वाले तारे

 तेरे न टिमटिमाने को 
को न समझूंगा तेरा न होना

बादलों में होड़ होगी तुझे
देखने की तो
मेरे भोले मन को क्यों रोना

चांदनी रात में तेरे टिमटिमाने को
मैं नहीं भूलूंगा
की चाँदनी तो कुछ दिन के लिए
होती है मेरे साथ
तू मुझे हमेशा मुझे मुस्कुराना
सिखाता रहता है


रात को तू टिमटिमाता है
मेरे दूर के तारे
और सूरज तेरा दोस्त
तेरी कमी को
सवेरे पूरा करता रहता है

तू बहुत उदार है मेरे तारे
तुझे बचपन से देखता आ रहा हूँ
तू टिमटिम करे या नहीं
सूरज की लाली मेरे मन के बंजर
का करता है नित्य सिंचन

सूरज अपनी लाली से
काली रात्री के भय से
मुझे मुक्त कर मेरे कल
का करता है नव सृजन

शायद कल मैं तुझसे बहुत दूर
हो जाऊं
शायद तुझे क्या सूरज को भी
देखने को तरस जाऊं
पर तेरा वो रोज़ टिमटिमाना
मुझे इंगित करता रहेगा
कि तू हमेशा मुस्कुराता है
और तेरी मुस्कराहट
अमावस की रात को
और भी बढ़ जाती है ...
और मुझे संबल देती है मेरे जीवन
के आने वाले संघर्ष के लिए...


ओ दूर से टिमटिमाने वाले तारे
तेरे न टिमटिमाने को
को न समझूंगा तेरा न होना ..

Sunday, April 24, 2011

और आज उस तार के पेड़ को को हम चुनौती देते हैं

वो ताड़  का पेड़ अब भी है 
कल उसके ऊपर वो नशा करने वालों 
को अमृत पिलाने का कार्य करने वाला 
वो 
गरीब घर का एक आम आदमी 
बड़ी चपलता से ,निर्भयता  से ऊंचाई 
पर पहुँच जाता था 
और हम उसके इस करतब को निहार 
कर प्रस्सन होते थे
सोचते थे की काश हम भी 
उस ऊंचाई पर चढ़ नीचे की दुनिया को 
देख पाते पर हमें क्या पता था की 
उंचाई पर चढ़ने के लिए बहुत साहस का होना 
जरूरी है 
आज उस ताड़ के पेड़ के बगल में एक ऊँचा इमारत खड़ा है और
हम आसानी से उसके मुंडेर  पर खरे  हो
उसपर बैठे पंछियों को निहारा करते हैं 
और आज उस तार के पेड़  को को हम चुनौती देते हैं 
हम उसके ऊंचाई तक पहुँचने के लिए
सीढ़ी का इस्तेमाल करते हैं 
और वो ताड़ी बेचने वाला अपने पैरों और हाथों  का ....



Saturday, April 23, 2011

उन पन्नों के सानिध्य में



हर पन्ने कहाँ कुछ बोलते हैं 
किसी के मन को कहाँ वो टटोलते हैं 

तेरे लिखे को किसी  योग्य पुस्तक  
के ह्रदय में  स्थान  तो मिल जाता है 

पर तेरे लेखनी को सार्थकता कहाँ 
वो देते हैं 

तेरे  पन्ने के साथ वाले पन्ने 
अगर किसी स्नेहयुक्त स्याही
से रचित किये गए हैं 
तो उन   पन्ने को  सदा स्थान मिलता है
उस पुस्तक के ह्रदय में 
पर इस मर्म को कौन समझते हैं 


उन पन्नों के सानिध्य में वो
अनजाना पन्ना भी एक दिन 
पुस्तक में परिवर्तित हो जाता है 


और पन्नो को समेटने का 
कर्त्तव्य निभाता जाता है 
एक जौहरी के जैसा 

और पन्ने से पन्ने तब  रोज़ सीखते हैं 

Friday, April 22, 2011

शिव ने जिसको मस्तक पर धारा...


नदी के किनारे 
वो सवेरेसवेरे आया करता है 
ढूँढने अपनी परछाई
उसके बहते पानी में
पर जैसे उसका मन स्थिर नहीं है
वो बहता पानी भी नहीं

तो उसे अपने
सत्य स्वरुप का दर्शन कहाँ होगा 
अपने मन के दर्पण में झांक की तेरा मन ही 
तुझको संवारेगा ,यूँ गंगा गोदावरी के अर्चन से 
तुझे आत्म-अवलोकन कब होगा

वो कितना पाप धोएगी 
कितनो के आंसूं ढोएगी
अब उठ और आगे बढ़ 
की तेरे मन में ही कहीं गंगोत्री है 
शिव ने जिसको मस्तक पर धारा
वो गंगा तेरे मन का मैल धोती है 
शिव का है प्रताप ,वो गंगाधर कहलाये 
हर मनुष्य के मन में ही है गंगा 
क्यों भटके हम बौराए 

  

Thursday, April 21, 2011

समुद्र के किनारे परे वो सीप

समुद्र के किनारे परे वो सीप 
आते हैं समुद्र के लहरों से निकलकर
चुनता है कोई उसे 
पिरोता है मालों में
कोई ले जाता है उसकी सुन्दरता से मुग्ध होकर 
फिर बढ़ाते हैं वो शोभा घर की 
वो सीप जो कभी किसी जीव का रक्षा कवच था 
आज शोभा बढा रहा है किसी के घर का 
अपने पालक होने का अस्तित्व निभाकर उसने 
अब दुसरे कर्त्तव्य को धारण कर लिया है 
पर उसे तराशने वाला वो माला  पिरोने वाला 
वो उस सीप के लिए एक इश्वर है
जो की उसमे एक नव जीवन देता है 
एक पहचान देता है
उस सीप को जिसे समुद्र की लहरें कभी रेत तो कभी पानी
के बीच कुदेरेते रहते हैं....इस जीवन के तरह जहाँ मानव एक सीप है 
और पहचान की तलाश में भटक रहा है सच और झूठ के खेल के बीच ..
इंतज़ार है इश्वर का...

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The snail shells are lying along the shore of the ocean
crumbling in summer ,winter ,spring,rain so often

After the tides come and throw them out of its engulf
before a tide comes, somebody pick them up 

and turned them into decorative masterpiece
which gave the beauty of the home a divine bliss

the common man who appreciate their values is a god 
The shells which were no where is now in abode


the shells which protect the little snails during its life time
has now got a new image and a new avatar just because of his artistic divine. 


The shells which were being corroded going here and there
between  the sea waves and the sand 
have got a rescuer ..........


And same is with the humans
who are wandering in this life and entangled between the foul play of lie and the truth..
waiting for the almighty to deliver ...

वो एक इन्द्रधनुष देखा मैंने

वो एक इन्द्रधनुष देखा मैंने 
देखा उसके कई रंगों को 
खो गया मैं उन रंगों में 
देख न पाया की वो है एक  बाह्य आवरण 
फिर उतारा उसको मैंने अपने जीवन में 
सब ने अपने रंगों को चाहा
पर किसने देखा की वो रंग 
बने हैं सच्चे मन के मंथन से 
जिसने देखा जैसे मन से 
उसने पाया वैसा रंग 
उन रंगों को समेट ले गया जो 
उसका मंथन किया जो 
उसने पाया मन को निर्मल 
श्वेत रंग  है सबसे शीतल 


क्यों भूलें..


क्यों भूलें..

क्यों भूलें उन बातों को
जो जीवन देते हैं
हर अच्छे और बुरे कर्म से
हमें अवगत करते हैं
चलते रहना मेरे साथी
वो संबल देते हैं
हर बाधाओं से लड़ने का
जो हिम्मत भरते हैं
ये न जीत न हार तेरी
ये तेरा मन का निश्छल परिवर्तन है
इश्वर के करुणा का ये तुझपे अर्पण है
जो कल तेरा होगा वो तुझपे निर्भर है
आज चलो,कल से सीखो ,अब देर नहीं तू करना
कल तो मरना ही है,पर आज नहीं तू मरना

नदियों का विस्तार तो देख

सागर से मिलने से पहले नदियों का विस्तार तो देख,  मिट जाने से पहले अपने होने का आधार तो देख  कुदरत है आँखों के आगे, कुदरत है मन के भीतर  भूल ...