पत्ते पर परे ओस की बूंदे
मोती नहीं होती
पर किसी पपीहे ,किसी भौरें
की प्यास बुझा सकती है
किसी राहगीर को जीवन दान
और स्फूर्ति दे सकती है
मोतियों के माला की
कीमत नगण्य हो जाती हैं
जब प्रकृति अपने चमत्कारों से
रूबरू हमें कराती है
जौहरी मोती की पहचान कर सकता है
सुख सुविधा से संपन्न वो
उसकी कीमत का अनुमान कर सकता है
पर प्रकृति सर्वथा अनमोल है
उसकी शक्ति निरंतर एवं अविरल है
उस की महिमा का वो थका हारा पथिक ही
बखान कर सकता है
Nishant ji bahut sateek bat kahi hai aapne .badhai .
ReplyDeleteप्रकृति की तुलना भौतिक संसाधनों से की ही नहीं जा सकती,,,प्रकृति की महिमा अपरम्पार..
ReplyDeleteआभार ..आप इतनी जल्दी जल्दी पोस्ट लागतें है की मौका नहीं मिलता सारी कृतियाँ पढने का..मगर इच्छा जरुर रहती है..
आशुतोष की कलम से....: मैकाले की प्रासंगिकता और भारत की वर्तमान शिक्षा एवं समाज व्यवस्था में मैकाले प्रभाव :
कोई बात नहीं ...आपने सराहना की अच्छा लगता है..
ReplyDeleteहाँ थोडा अंतराल रखूँगा....आगे से इसका ध्यान रखूँगा..
आपका आभार ...
प्रकृति की महिमा अव्यक्त है ..