Sunday, April 24, 2011

और आज उस तार के पेड़ को को हम चुनौती देते हैं

वो ताड़  का पेड़ अब भी है 
कल उसके ऊपर वो नशा करने वालों 
को अमृत पिलाने का कार्य करने वाला 
वो 
गरीब घर का एक आम आदमी 
बड़ी चपलता से ,निर्भयता  से ऊंचाई 
पर पहुँच जाता था 
और हम उसके इस करतब को निहार 
कर प्रस्सन होते थे
सोचते थे की काश हम भी 
उस ऊंचाई पर चढ़ नीचे की दुनिया को 
देख पाते पर हमें क्या पता था की 
उंचाई पर चढ़ने के लिए बहुत साहस का होना 
जरूरी है 
आज उस ताड़ के पेड़ के बगल में एक ऊँचा इमारत खड़ा है और
हम आसानी से उसके मुंडेर  पर खरे  हो
उसपर बैठे पंछियों को निहारा करते हैं 
और आज उस तार के पेड़  को को हम चुनौती देते हैं 
हम उसके ऊंचाई तक पहुँचने के लिए
सीढ़ी का इस्तेमाल करते हैं 
और वो ताड़ी बेचने वाला अपने पैरों और हाथों  का ....



3 comments:

  1. और आज उस तार के पेड़ को को हम चुनौती देते हैं
    हम उसके ऊंचाई तक पहुँचने के लिए
    सीढ़ी का इस्तेमाल करते हैं
    और वो ताड़ी बेचने वाला अपने पैरों और हाथों का ....

    बहुत सार्थक और अच्छी सोच ......
    सुंदर भावाभिव्यक्ति.

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  2. सुंदर भावाभिव्यक्ति.

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