वो सवेरेसवेरे आया करता है
ढूँढने अपनी परछाई
उसके बहते पानी में
पर जैसे उसका मन स्थिर नहीं है
उसके बहते पानी में
पर जैसे उसका मन स्थिर नहीं है
वो बहता पानी भी नहीं
तो उसे अपने
सत्य स्वरुप का दर्शन कहाँ होगा
सत्य स्वरुप का दर्शन कहाँ होगा
अपने मन के दर्पण में झांक की तेरा मन ही
तुझको संवारेगा ,यूँ गंगा गोदावरी के अर्चन से
तुझे आत्म-अवलोकन कब होगा
वो कितना पाप धोएगी
कितनो के आंसूं ढोएगी
अब उठ और आगे बढ़
की तेरे मन में ही कहीं गंगोत्री है
शिव ने जिसको मस्तक पर धारा
वो गंगा तेरे मन का मैल धोती है
शिव का है प्रताप ,वो गंगाधर कहलाये
हर मनुष्य के मन में ही है गंगा
क्यों भटके हम बौराए
bhawpoorn rachna
ReplyDeleteसत्य कहा आप ने मन में ही गंगा और इश्वर का वास है..हम ब्यर्थ ही भटकते हैं..
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिए आभार