Saturday, February 22, 2014

आज कुछ हर्फों में

बारहा खुद से तुम न युहीं लड़ो यारों 
इक दफा खुद की भी बात तो सुन लो यारों 

जिस तरफ कोई शख्स भी नहीं जाता ,
उस तरफ मुझको, आज ,ले चलो यारों 

या तो महफ़िल मे चुप यूँहीं रहने दो ,
और बस तुम ही तुम, गुफ्तगू करो यारों 

बस कि कुछ देर सही दूर उन लहरों से 
तन्हा साहिल पे भी, आज तुम रुको यारों

दौर कैसा भी हो ,बस यही कोशिश थी
कोई रुसवा हमसे न कभी भी हो यारों

जो जुबाँ से कभी कह सका नहीं शायर
आज कुछ हर्फों में ढूँढ कर पढ़ो यारों

ख्वाब तो देखो तुम "नील" आँखों से मगर
राह चलते चलते न ख्वाइशें कहो यारों

Sunday, February 2, 2014

intrinsic qualities

WHEN we lost the property ,we suffer only for some years
and finally can overcome it by our diligence but when we lose the character and the dignity,we suffer our whole life
then it's no matter that we are right or wrong because the character is an intrinsic quality
and the world is not rational in judging the intrinsic qualities.

Saturday, February 1, 2014

अधलिखा किताब


इक   अधलिखा  किताब  रात  भर  जागता  है 
सुबह के इंतज़ार में बस सन्नाटे   को  सुना करता है 


जब  इंतज़ार  ख़त्म  होती  है  तो   पहली   किरण   एक  और पन्ना   भर  देती  है  चुपके  से ...

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...