मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब
बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब
आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो
चलिए ,दिल के गलियारे में भी उतरिये अब
ज़ख्म ये जिस्म के नहीं हैं ,दवा काम न करेगी
अपने मुरब्बत ,अपने करम से इसे भरिये अब
न था कभी ,न रहेगा ,न होगा ज़माना अपना
खुदा पे भरोसा रखें,ज़माने से न डरिए अब
जब हैं हम ,तो फिर क्या गम है ,आपको सनम
आप खुद से यूँ तनहा-तनहा नहीं लरिये अब
आपके दामन में नूर-ए-आफताब बहुत पाक है
जाकर मुफलिसों के महफ़िल में बिखरिये अब
ज़मीन पर कदम रख, ख़्वाबों के पंख के संग
इक मुकम्मल जहां की ओर ज़रा बढिए अब
मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब
बहुत चला सफ़र में ,ज़रा आप भी चलिए अब
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 10 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteज़मीन पर कदम रख, ख़्वाबों के पंख के संग
ReplyDeleteइक मुकम्मल जहां की ओर ज़रा बढिए अब --बहुत खूब...
बहुत सुंदर ग़ज़ल
ReplyDeleteबधाई
ज़मीन पर कदम रख, ख़्वाबों के पंख के संग
ReplyDeleteइक मुकम्मल जहां की ओर ज़रा बढिए अब
मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब
बहुत चला सफ़र में ,ज़रा आप भी चलिए अब
बहुत खूब । बेहतरीन ग़ज़ल