कल की कोई परछाई आज पीछा करती है
काग़ज़ों पे मेरे तश्वीर खिंचा करती है
नज़्म नज़्म खिलते हैं ,धुन से धुन मिलती है
हर्फ़ हर्फ़ से मेरे मन को सिंचा करती है
उलझनें बहुत हैं इस जहान में मगर
वो हर बात बस सीधा सीधा करती है
हर इक मोड़ पे ,हर सफ़र के दरमियाँ
हो सुकून कैसे ,ज़िन्दगी सिखा करती है
ये ज़िन्दगी किसी और से हारेगी क्या
खुद से हारती है,खुद से जीता करती है