Sunday, February 10, 2019

धुन

वो मौसम  सा नहीं ,एक सवेरा  है 
शाम ढलने तलक ही हो ,  वो मेरा है 

धुन मुझे मेरा  ही ले जाए दूर कहीं ,
मन को रोके हुए वो  एक  सपेरा है 

जाने किस किस पत्थर को  हटायें यारब ,
हर सू उलझन है ,हर सिम्त बखेरा है 

ढूँढ लेना आते हो जिन राहों से ,
अपनी अक्सों को मैंने वहाँ बिखेरा है 

है अकेला नहीं ,शायर है ,कोई कह दो 
"नील" के घर में गज़लों का बसेरा है 

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...