वो मौसम सा नहीं ,एक सवेरा है
शाम ढलने तलक ही हो , वो मेरा है
धुन मुझे मेरा ही ले जाए दूर कहीं ,
मन को रोके हुए वो एक सपेरा है
जाने किस किस पत्थर को हटायें यारब ,
हर सू उलझन है ,हर सिम्त बखेरा है
ढूँढ लेना आते हो जिन राहों से ,
अपनी अक्सों को मैंने वहाँ बिखेरा है
है अकेला नहीं ,शायर है ,कोई कह दो
"नील" के घर में गज़लों का बसेरा है