वो मौसम सा नहीं ,एक सवेरा है
शाम ढलने तलक ही हो , वो मेरा है
धुन मुझे मेरा ही ले जाए दूर कहीं ,
मन को रोके हुए वो एक सपेरा है
जाने किस किस पत्थर को हटायें यारब ,
हर सू उलझन है ,हर सिम्त बखेरा है
ढूँढ लेना आते हो जिन राहों से ,
अपनी अक्सों को मैंने वहाँ बिखेरा है
है अकेला नहीं ,शायर है ,कोई कह दो
"नील" के घर में गज़लों का बसेरा है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-02-2019) को "फीका पड़ा बसन्त" (चर्चा अंक-3245) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Aapka aabhaar
ReplyDeleteAapka dhanyvaad
ReplyDelete