Wednesday, December 28, 2011

मिट गया राह-ए-वफ़ा में तो गम ना कर

ख़्वाबों  से हकीकत में ,अब आया जाए 
शहर गुमसुम क्यों है ,उसे जगाया जाए 

मिट गया राह-ए-वफ़ा में तो गम ना कर 
कोई ना लुट जाए , उसको   बचाया जाए 

पास  शोहरत है तो काफिला संग है मगर 
गुरबत्त की रोटियों को यूँ न भुलाया जाए 

जो आइना दिखा कर अपना चेहरा छुपाये 
उसके इरादों को भी ज़रा  बताया जाए 

नफरत से मकान जलते हैं ,इश्क से दिल 
तो क्यों न अब आशिकी सिखाया जाए 

सब साथ  छोड़  देते हैं कुछ दूर चलकर  अगर 
तो क्यूँ न अब रूह को दोस्त बनाया जाए 

मातम मना तेरा  कहीं बेच न दे उसे ,तो 
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाए 

जब तेरे मामले का मुंसिब वही  कातिल है 
तो  मुस्लफी का अदद शोर क्यूँ मचाया जाए 

जब आई मंजिल तब साहिल पे इंसा न थे 
चलो,मजधार को ही दिल से अपनाया जाए 

"नील" जब नज़्म तेरी आहों को परवाज़ दें 
तो क्यूँ बेबसी में अश्क अब बहाया जाए 


Friday, December 23, 2011

जी भर के देख ले न मुझे अपनी नज़रों क़ी चाँद से ...

चाँद खेलता है मुझसे
कहता है कल आऊंगा
काले धब्बे को मैं चाँदनी के दूपट्टे  में छुपाऊंगा 

मैं कहता उसको  कि क्या होगा 
अमावास तो आएगी ही 
तू उदास होगा तो मेरा  दीप तुझे मुस्काएगी ही ...

वो कहता की देख ले मुझको आज जी भर के जाना 
कल का क्या भरोसा मैं चाँद हूँ 
कई चकोर हैं 
तू समझ न जाना की प्रेम का न कोई छोर है ...

तू अपने आँखों से 
मेरे धब्बो को देखती है 
तू उसको काजल कहती है 
मुझको सुंदर कहती है
तू निश्चल है मेरी जाना 
पर मुझे सभी का होना है 
तू मेरे चाँदनी को आज जी भर देख ले जाना ...

मेरे काले धब्बे को आज 
उकेरना किसी कागज़ पर 
मुझे दिखाना अगले पूनम पर 
मेरी तश्वीर और बताना कि 
तू मुझे किस रूप में देखती थी ....

जिसने जैसा रूप देखा मैं उसका हो गया ...
कितने चकोर आये गए पर कितनो को
मिल पाया मैं ?


बस जाता हूँ उनके दिल में 
जिनके दिल निश्चल होते हैं ...
मैं न रहूँ तो भी वो याद मुझे करते हैं ...


कभी  कागजों  पर तो कभी अधरों पर 
कभी साजों पर तो कभी 
ख़्वाबों में ही फ़रियाद करते हैं ...

ऐसे चकोर का मैं खुद दीवाना हूँ
चाँद हुआ तो क्या हुआ जाना  मैं भी
एक  परवाना हूँ ...


आओ न चकोर!
 आज की रात देख लो  न मुझे जी भर के 
मेरी चाँदनी आज तुम्हारी नज़रों से 
खिल उठी है ,


देखो
बादलों ने भी घूंघट डाल दी है मुझ पर....
तारे आज तेरी बारात की 
स्वागत में टिमटिम करके 
रौशनी के फूल बरसा रहे हैं...


आओ न चकोर .....
जी भर के देख ले न मुझे अपनी नज़रों क़ी  चाँद से ...

*नीलांश 

Thursday, December 22, 2011

जो आइना सा साफ़ है ,उसकी सफाई ले ले

जो आइना सा साफ़ है ,उसकी सफाई ले ले 
ये मोहब्बत जो हमें रास ना  आई ले ले 

अगर तुम्हे लगता है ये चाहत बेमानी है
तो आके दिलनशीं हमारी पाई पाई ले ले

तू खुश रहे सनम हमको ये ज़मीन दे दे 
और उस नीली आसमां की तू उंचाई ले ले 

ए नमाज़ी,ज़रा,देख,वो बच्चे बहुत भूखे हैं
छोर के परस्तिश जा उनकी दुहाई ले ले

अब अँधेरे को मिटाना है अगर तुझको 
तो भूल बेबसी ,कलम-ओ-रोशनाई ले ले 

हर मोड़ है पहेली,है मौत है अब आसां
ये ज़िन्दगी अदब से है आजमाई ले ले
हम न मिलेंगे दुनिया के किसी कूचे में
दिल में ही तेरे वास्ते दुनिया बसाई ले ले

हर रंग ज़माने के देखे तुझसे बिछुड़ के
आज उस रंग से ही मेहँदी रचाई ले ले

उस जुलाहे ने कल नींद को पाला है
जारे में तेरे लिए बुनी है रजाई ले ले
गर कभी तेरे दर पे आकर खुदा मिले 
तब मिटा के हमें दिल से,उससे खुदाई ले ले 

"नील" को भुला दे मगर ये सुन लेना
तेरे दीवानगी में जो नगमे बनाई ले ले 




Thursday, December 15, 2011

दिन मेरा ढल गया

लगता है तीर दिल के पार निकल गया 
सुबह है अभी  मगर दिन मेरा ढल गया 

बुलाया उन्होंने ,गए शिद्दत से दिल लेकर
और गए तो वहाँ का मौसम बदल गया

लगता है ज़माने को पता चल गया था
इसलिए शम्मा से पहले परवाना जल गया

जब तगाफुल किया हुस्न को शिरत देख
तो वो खुदगर्ज़ सर-ए-आम दहल गया

ज़ीस्त को बनाया ही क्यों ठंडी बर्फ से
जो ज़रा सी गरमी से आज पिघल गया

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल अब दीखते नहीं
बेअदब जूनून बचपन को निगल गया


ग़म-गुसार नहीं अब रहा ये ज़माना भी 
जिसको दी थी मुरब्बत वो ही छल गया 

ये तंज ही तो है कि सब मिसाल देते हैं 
कि मेरा हश्र देख ये गुलशन संभल गया 

आपसे क्या कहते तश्वीर से ही बोले ,मगर 
"नील "अब  तो उसका भी मन बहल गया 



Wednesday, December 14, 2011

डरते थे !

 नूर-ए-नज़र उनकी   पाने से डरते थे
सर-ए -महफ़िल मुस्कुराने से डरते थे!!! 

यूँ  तो  तसव्वुर  में  भी  वो  थे  मौजूद 
हाल-ए-दिल मगर सुनाने  से  डरते  थे !!!

खुशियाँ ढूँढी  थी  उनकी  हर ख़ुशी में 
ना लग जाए नज़र ,ज़माने से डरते थे !!!

चुप चाप  रह कर सुना उनके दर्दों को 
मरहम  उन्हें पर ,  लगाने से डरते थे !!

तिनके तिनके कर बीते गए थे रैना  


हम उनको सदा खो जाने से डरते थे !!!

ए "नील" हकीकत में फ़रिश्ता मिला था 
पर ख्वाब हसीं हम सजाने से डरते थे !!!







Friday, December 9, 2011

आज जब वो नहीं है तो उनकी बात का फ़साना निकला

वो बोल गए इक दिन की भुला दे  हम 
सारे ख्वाब को लिख कर जला दे हम 

आज जब वो नहीं है तो उनकी बात का फ़साना निकला
नज्मो के रूह से आज भी जलता हुआ परवाना निकला 

इक अदद याद में तुम तबाह न करो महफ़िल को
ये सागर से भी है गहरा ,यूँ छोटा न करो दिल को

तो

आओ, रोते हुए उन चेहरों को हंसाया जाए
घर में बिखरी हुई चीजों को सजाया जाए

मखमली ख्वाब के समंदर में डूब कर देखो
क्यों न उनसे ही हसीं सरगम बनाया जाए

वफ़ा की उम्मीद में इश्क को बदनाम न कर
अश्कों से ही सही,दिल का दिया जलाया जाए


दीवाली का जश्न तो हर साल होंगे ,मगर
कभी फौजियों को भी सुना-सुनाया जाए

कश्ती नीलाम न हो जाए कहीं साहिल पर
ए "नील",उन,लहरों पर दाँव लगाया जाए

Wednesday, November 23, 2011

हकीकत से हंसीं है ख्वाब देखा

इस  शहर में आइनों का  शबाब देखा  
हकीकत  से  हंसीं   इक  ख्वाब  देखा !!  

काँटों के सेज सजे मिले हर मोड़ पे  
मगर  काँटों में मुस्कुराता गुलाब देखा !!

कई सवाल उलझे थे  धागों की तरह 
उंघते चेहरों में उनका जवाब देखा!! 

बिक  गए  शज़र  कौड़ियों  के  दाम 
साँसों का कुछ अजीब  हिसाब  देखा!! 

खामोश  रातों  में  रतजगा करते 
इक  अधलिखा हुआ  किताब  देखा !!  

सवेरा हुआ तो इल्म हुआ "नील" 
कि कल रात महज़ इक ख्वाब देखा !!



हर चेहरे में ढूंढा किया है , उनका अक्श


अजनबी  शहर  से  कुछ  ऐसा  सिला  मिला 
बेगानों  के  सफ़र  का  बस  काफिला  मिला 


वो  आये  लहरों  की  तरह से  ज़िन्दागनी  में 
हमको मगर  समुंदर सा इक फासला  मिला 


जब  भी  कदम  रुके  वो  साँस  बन  गए 
हर  हार  में , उनकी  दुआ  से ,हौसला मिला 


हर  चेहरे  में  ढूंढा  किया  है , उनका अक्श
मगर बेरुखी  का ,बस हमें  सिलसिला  मिला 


जब  सभी  को  है  खबर  उनकी  परश्तिश  की   
तो  क्या  फिकर, उनसा न  कोई,  बागवां मिला 


ले  आरज़ू  इक  दर्श की  फलक को तकते थे 
मगर ओढ़  बादल को  सदा,वो  आसमा मिला 



Tuesday, November 22, 2011

बस ये अदब शेर नहीं इक दुआ है


बस ये अदब शेर नहीं इक दुआ है ,
मेहर से आपके मुमकिन हुआ है ,

पता नहीं कि ये कितना मशहूर है ,
पर है भरोषा की रूह को छुआ है ,

जो आग दिल में जला करती है ,
बस ये उसी का तो बढ़ता धुँआ है ,

साहिलों पे बैठ सुना करता हूँ मैं ,
ये लहर है जिसने मदहोश किया है ,

ये ही कल था ,ये ही मेरा आज है ,
ये ही तो सुनहरे कल का जुआ है ,

जीतेंगे नहीं तो रुकेंगे भी नहीं  सनम ,
जब खुद रब आकर मेरे संग हुआ है


Friday, September 9, 2011

है "नील" की साँसों में अब भी तुम्हारे सरगम

ये ज़र्रा  ज़र्रा आपसे  रौशन हमारा हो गया 
हिज्र के मौसम में जीने का सहारा हो गया 

लोग थे परेशान यहाँ बेमौसमी बारिश से 
पर तेरे दिल के नूर से , अब बहारा हो गया 

मुश्किलों के साये  मंडराते रहे बहुत मगर 
रंग-ए-इश्क जाने जाना  और गाढ़ा हो गया 

हमने हर गली में तुम्हारा ही अक्श देखा है
हर गली में बदनाम भी देखो यारा हो गया 

कश्ती ने मांझी को ज्यूँ मजधार से निकाला 
वो किनारे पे पहुँच, बेखुदी का मारा हो गया 

कभी बादलों को रेत के सेहरा में अगर देखो 
तब ये समझ लेना क्यूँ खेल सारा हो गया 

है "नील" की साँसों  में अब भी तुम्हारे सरगम 
तू उसके  हसीं ग़ज़ल का इक सितारा हो गया 










Friday, August 26, 2011

अभिषेक

धरती पर आते  सूर्य किरणों का  प्रथम आवेग हूँ मैं 
रन क्षेत्र में डटे हुए किसी क्षत्रिय का तेज हूँ मैं 
लहरों  से लरते   हुए एक  नाविक का विवेक हूँ मैं 
पत्ते   से गिरते बूंदों से   माटी  का अभिषेक हूँ मैं 

किसी  कवि की  लेखनी  का पहला आलेख हूँ मैं 
मन के मरुभूमि में साहित्य की ठंडी रेत हूँ मैं 
सृष्टि की शक्ति का एक पावन उल्लेख हूँ मैं 
बालक के मुख से  माँ की ध्वनि का अभिषेक हूँ मैं 






मेरा आखिरी पैगाम ले ले!!


ए जाने वाले जाने से पहले 
मेरा आखिरी सलाम तो ले ले ..

ये वक़्त घुल न जाए सीने में मधु बनकर 
याद आयेंगे तुझे हर सांझ हर सुबह ये मंज़र... 


हम भी काफिर सा नहीं सोचेंगे खुद को कभी 
तू भी सुकून से रहेगी ,ए मेरी ज़िन्दगी ...

जुदाई तो बस ज़िन्दगी की  एक शुरुआत है  
आज तो जी भर के जी ले इसे 
ये मिलन है ,तू समझ न  मेरी जाना ..
ये  हमारे रूह की बात है ...

है पाक ये  दिल ,तू है इसकी धड़कन 
ज़िन्दगी में होंगे तेरे संग , मेरे गीतों  के सरगम   
पर आज तो जाना  मेरा   
आखिरी पैगाम ले ले ...

मेरा आखिरी पैगाम ले ले ....

Saturday, July 23, 2011

तू ही तो जीना सिखाती है ...


तू   ही   तो   मुझे   सुलाती   है  ,तू   ही  तो  मुझे  जगाती    है  
हर   पल   तू  संग  संग  रहती  है ,तू  ही  तो  जीना  सिखाती  है   

जब  पूरब   से   सूरज  उगता   है ,कोई  पंछी  दाना  चुगता  है 
जब  मद्धम  सी  इक  पवन  चले ,और  गुलशन  में  इक  गुल  खिलता  है 


तू  आँखों  में  आ  जाती  है ,रह  रह   कर  मुझे  सताती  है 
मेरे  साँसों  की  हर इक  सिसकी   से ,गीतों  की  धुन  बन  जाती  है 
तू  ही  तो  जीना  सिखाती  है...   


फिर  इक  पुरवैय्या  हौले  से ,दरख्तों  को  सहला  देती  है 
जैसे  हो  छनकती तेरी पायलिया   ,जो   मन   को  बहला   देती  हैं 


फिर  टिमटिम  करते  हुए  तारें ,चंदा  के  संग  आ  जाते  हैं 
और  रात   के  घने   अँधेरे  में ,तेरी   कजरे  की  याद   दिलाते   हैं 


जब  इक  कोर  निवाला  लेता  हूँ ,तेरी   कंगन  मुझे  सताती  है 
और  मीठी  मीठी  तेरी  बातें ,मुझे  सपनो  में  ले  जाती  हैं 
तू  ही  तो  जीना  सिखाती  है...   


बस  ख़्वाबों  में   ही  मिलना  है , ऐसा  ही  जीना  मरना  है 
कुछ  ख्वाब  अभी  भी  बाकी  हैं ,उनको  ही  पूरा  करना  है 


तुम  सतरंगी  सपने  लेकर  मेरे  नींदों  में  आना  यारा 
मेरे  दिल  की  धड़कन  को  सुनना  और  दिल  में  बस  जाना  यारा 


तू  गाँव  गाँव   ,मैं  शहर  शहर  हम  गुर्बत्त  के  साथी  है 

तू   ही   तो   मुझे   सुलाती   है  ,तू   ही  तो  मुझे  जगाती    है  
तू  ही  तो  जीना  सिखाती  है ...

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Friday, July 22, 2011

देर तक

ख्वाब  तिनके  के बनाया ,देर तक  
खुद जला,उनको जलाया,देर तक

बादलों से इश्क जो वो कर गया 
गम की बारिश में नहाया, देर तक 

मयकदे में भी उन्ही का शोर है
ये सुना तो, पि ना पाया, देर तक 

लोग न कहीं दोष दें उनको कभी
इसलिए आंसू छुपाया ,देर तक 

जिस्म क्या,कफ़न भी तब बिक गए
जब उसने , मातम मनाया ,देर तक 

चकोर कब कहता है ये चाँद से
तू अमावस में न आया देर तक 

वो न मिल जाएँ कहीं फिर ख्वाब में
इसलिए खुद को जगाया, देर तक

आंधियां कब पूछती हैं शाख से
फल को तुने क्यूँ पकाया, देर तक 

नील की ग़ज़लों में उनका राग है
साथ उसने यूँ निभाया ,देर तक 




Monday, July 4, 2011

मुसाफिर

कुछ अफ़साने रूह में उतर जाते हैं मुसाफिर
कुछ उम्मीद टूटकर बिखर जाते हैं मुसाफिर!!

ज़िन्दगी चलती है ,इसे चलना ही होता है
जो ख्वाब देखते हैं ,संवर जाते हैं मुसाफिर !!

Thursday, June 30, 2011

भंवरे

बगिये  में  भंवरे
बहुत दूर से आया करते हैं
कृष्ण तन होता है लेकिन निर्मल 
मन वो रहते हैं 

देखो न ,
तभी तो शहद कितना मधुर हुआ करता है

बेरहम मौसम के प्रहारों से 
वो पुष्प तो मुरझा जाते हैं

पर वे कृष्ण काय भंवरे उसकी
खुशबू को जिंदा रखते हैं ...

Wednesday, June 29, 2011

दूर और पास ...एक एहसास

दूर और पास होने के भेद 
कम होने लगते हैं
जब कभी  मैं ढूंढता हूँ 
खुद को और 
तुझको नहीं पाता हूँ  ....

खुद से दूर होकर तुम्हारे पास 
चला आता हूँ
और ज़िन्दगी
तुझसे दूर कर देती है ...

पर इस क्रम में 
मेरी तलाश 
अब और सजग हो गयी है ...


एक अघोषित रिश्ता 
अब साथ है 
एहसासों के कर्तव्यों को 
निभाते और स्वीकार 
करते हुए अनवरत ..... 

अब  धीरे धीरे तू मेरा "मैं" 
बन गयी है 
अब मैं अकेला नहीं हूँ ...


और न ही गम तुम्हे 
अलग कर  पाएगी 
मेरे अस्तित्व से ,


क्या जल की धरा को 
कोई काट साकता है, नहीं न !
तो एहसासों के समुंदर को 
काटना भी गम के लिए
मुमकिन नहीं ...




Monday, June 27, 2011

हमने चुन ली है राह दूसरी कोई!!

पल -छिन लिए जाते हैं ,एक अनंत सफ़र की ओर
शुरू कहाँ से किया था हमने ,कहाँ होगा अपना ठौर ...

जीत मिलने पे अभिमान नहीं,हार भी हमको है मंजूर
कांटे राहों के चोट अहम् को दे कर,तोड़ देते हैं सारा गुरूर

कहती है खुशबु बहारों की ,रब साथ है अपने
काफिला छूटा तो क्या, नहीं बदले हैं मेरे सपने

बुला रहा सूरज बाहर का ,तुम आओ न कभी मेरी ओर
लेकिन राह चुनी है हमने ,जो जाती अंतर की ओर

काफी है हमको वही रौशनी , रहती है जो अपने अंदर
छाता है जब बाहर अन्धकार ,रौशन कर देती सब मंजर 


आगे बढ़ता है  कोई,  इनाम पाने के लिए 
कोई बढ़ता है ज़ख्म दिखाने के लिए 

राहबर है कोई यहाँ  , तो  कोई बढ़ता है एहसान उतारने के लिए 
हम ऐसे हाजी है  जो बढ़ते हैं  ,खुद को समझने ओर पहचानने  के लिए ..


झांकते है अपने खुद में ,परखते  हैं खुद की  रौशनी को 
इम्तेहान देते हैं रोज़ ,उसी रौशनी को जिंदा रखने के लिए ...





ज़िन्दगी

ये ज़िन्दगी आईने को भी आइना दिखा देती है 
इंसान का क्या ,पत्थर को भी खुदा बता  देती है 

जब भी चलती है एक कारवां  संग चलता है 
रूक जाए  तो सिकंदर को भी रास्ता दिखा देती है 

टूटते ख़्वाबों के दरमियाँ बनते बिगड़ते रिश्ते 
ये तो हर इक   रिश्ते का मतलब सिखा देती है 



मुकम्मल जहां की तलाश में कुछ न हो हासिल 
ये मगर मौत का तोहफा दे एहसान जता देती है 

देखते ,ढूंढते ,समझते रहे सारे कायनात को 
ये मगर वो किताब है जो हमें खुद का  पता देती है 

यही   दोस्त ,यही दुश्मन ,यही हमसफ़र है "नील"  
ये गर चाहे  तो मरघट में भी घरौंदा बसा देती है  


Sunday, June 26, 2011

एक नयी नवेली सुबह की मंजिल पर निकलेगी साकी आज की रात ...

टूटे  हुए  प्याले
रूठे  हुए  पीने  वाले 



साकी  है  मौन 
निहारती  हुई  अपने  मधुशाला  को  
अंगूर वाली मधुलता से  जिसे  कभी  बनाया  था 
मधु  का  दान  करने  के  लिए  ......


पर  क्यूँ  ?


क्यों  से  
सृजन होगा   
एक  नयी  शुरुआत  का,



उम्मीदों  का  संबल
विश्वास  की  शक्ति
और  
कोशिशों  के  सफ़र पर
माझी  बनकर  खुद
अपने  सपनो  की  किश्ती  में
एक  नयी  नवेली सुबह  की  मंजिल  पर
निकलेगी साकी 
आज की रात  .....

और  आयेंगे
फिर  नए  सपने  लिए कई  यात्री ...
आशा  की दीपक  के संग  और
फिर  से  बनेगी  एक  मधुशाला  ...



दूर कहीं किनारे पर.....

Saturday, June 25, 2011

दिए से बाती को जुदा नहीं करते !!

दिए से बाती को जुदा नहीं करते 
दोस्त बन बनकर दगा नहीं करते 

गुल के संग कांटे भी खिला करते हैं 
चंद  लफ़्ज़ों के लिए, गिला नहीं करते 

महबूब तो दिल में रहा करते हैं 
उनकी गलियों का ,पता नहीं करते 

फ़रिश्ते होते हैं खुदा के बन्दे 
उनसे नफरत की ,खता नहीं करते 

राह में शोर न मचाया करना 
लोग अब शुक्र भी, अदा नहीं करते 

तू पहचान ले खुदी को शायर 
खुद को युहीं , फ़िदा नहीं करते 

बड़ी मुश्किल से इज्ज़त बनती  है 
बेखुदी में इसे ,फना नहीं करते  

.......
"नीलांश निशांत  "  








हर सांस में आरज़ू जीने की दफ़न है ...

हम  तो  उस शहर  में  हैं  जहाँ  गम  ही  गम  है
पर  निशार   हर  ख़ुशी  पर   हमारी  हर  नज़्म   है
उसे  ही  सुनकर  हम  भी  खुश  हो  जाया  करते  हैं  ...
लोग  अब कहते    हैं  की   बन्दे   में  कितना   दम   है  ...

जब  रात  के  अँधेरे  में  सारा  जहाँ  सोता  है ...
हम  गम  में  डूबकर  ही  लिखते   कोई   ग़ज़ल  हैं ...
उसे  दूर  महफिलों  में  कोई  सुना  करता  है .......
हम  तो  खुश  हैं  इसी   में  ,की  गुलज़ार  वो  गुलशन  है ...

अब  ज़िन्दगी  बेपरवाह   कट  जाएगी  हमारी ...
हर  सांस   में  आरज़ू  जीने  की  दफ़न  है ...
बेहिसाब  गम  की  बारिश  करना  मेरे  प्याले  में ...
हम  छलकायेंगे   खजाना   ख़ुशी  का ,जब  तक  दम  में  दम  है ...

हम  तो  उस  शहर  में  हैं  जहाँ  गम  ही  गम  है ...

जो कभी एक थे आज उनसे ही ये सारा ज़माना बन गया ...

राह  में  अकेला  नहीं  है तू  मुसाफिर
तुमने  पुकारा  हमको
हमने  तुमको आवाज़ दी
और इक  कारवां  बन  गया

जो  कभी  एक  थे  आज  उनसे  ही
ये सारा  ज़माना    बन  गया  ...


मुश्किलों  में  अपनों  का  साथ
हो  तो  हर मुश्किलें  हार  जाते हैं 
अमावस में चाँद न हो  मगर
तारे फिर भी टिमटिमाते हैं

खुशियों  में  साथ  दें  हम गर
तो जीवन  एक  गीत  सुहाना  बन  गया  ...
मिलते  नहीं  मेहरबान इस पत्थर की शहर में

जो मिल सके तो समझो आशियाना बन गया ...

जो  कभी  एक  थे  आज  उनसे  ही
ये सारा  ज़माना    बन  गया  ...


मन  मंदिर  में  ही तो  इश्वर  रहते हैं
हम उनसे अलग कब होते हैं 

जो बस गया इस मंदिर में 
वो ही कबीरा ,वो ही रैदास  
वो ही मीरा  और सूरदास सा 
दीवाना  बन  गया  ...
वो खुद में ही इक शम्मा
और खुद में ही
परवाना बन गया ...

जो  कभी  एक  थे  आज  उनसे  ही
ये सारा  ज़माना    बन  गया  ...

मन  की  तरंगो  को  सुन  कर  चले  आओ
आओ खुशबू   है यहाँ हरदम 
इस गुलशन में समा जाओ 

जो मन मिल सकें तो समझना 
ज़िन्दगी इक  नेक  फ़साना  बन  गया ...

जो  कभी  एक  थे  आज  उनसे  ही
ये सारा  ज़माना    बन  गया  ...



इंतज़ार

लोग धुप में छाँव ढूँढा करते हैं 
शहर में गाँव ढूंढा करते हैं 

ये भूल जाते है कि किसी नज़र में इंतज़ार उनका भी  है !


पीपल के छाँव में

दिन भर के काम से थका हारा 
पीपल के छाँव में बैठा है वो पथिक ,


ये सोचता हुआ कि
घर पर आज सोना होगा फिर से 
काले आसमान के तले ,

इसलिए सुस्ता लेता है थोड़ी देर 
उसके असंख्य पत्तों को 
रब कि मेहर मान  जो उसे पंखा झूल रहे हैं ,

क्या हुआ जो घर में बिजली नहीं है 
मेहनत की  है तो रब ने ये पीपल को 
लहलहाया है उसके लिए ,

आज बच्चों को कहानी सुनाएगा 
इस पीपल की कोई अच्छी सी ,

वो भी सिख जाएँ मेहनत का अर्थ 
और जीना सिख जायें ...


इत्तेफाकों में खो कर उसकी कहानी हो गयी!

मिट गया वो जिस पे तेरी मेहरबानी हो गयी
बेनाम था मगर अब उसकी भी कहानी हो गयी!!

उसकी इबादत को तो काफिर कह कर ठुकराया
उनकी जफ़ाओं की भी , दुनिया दीवानी हो गयी !!

मालूम है कि कागजों पर अब भी वो नाम होंगे
पर रेशमी रश्मों से ,गलियाँ वीरानी हो गयी !!

अब भी वहीँ है अल्हड़ , बस चाँद को ताकता है
अब बादलों की है साजिश , फिर बेईमानी हो गयी !!

चर्चे होते हैं अब भी हर महफ़िल हर सफ़र में
इत्तेफाकों में खो कर उसकी कहानी हो गयी!!

ये कैसी ख़ामोशी है ...

ये  कैसी  ख़ामोशी   है ....  


कभी   देखा    है  तूफ़ान  के  पहले   की  ख़ामोशी .....




कहीं पौधों को काटकर बनाये हुए कंक्रीट के शहर हैं तो 
कहीं  नदियाँ के पानी को रोका गया है निरर्थक बाँधों  से ...


पर आज उन घरों में दुबके लोग डरे हुए हैं इस तूफ़ान से कि इसकी नीव  न हिल जाए कहीं ....
पौधे होते तो इस तूफ़ान की गति को क्षीण कर स्वयं थपेरों को सहते हुए उनकी रक्षा कर लेते शायद ......


पर जब सच को दबाया  जाता है 
तब  अन्दर ही अन्दर एक ज्वाला जलती है 
और जिस दिन अति हो जाती है प्रपंचो और झूठे खेल की 
तो सब एक हो कर आक्रमण करते हैं ज्वालामुखी बनकर  
जिससे झूठ की प्रकृति में छुपे हुए  झूठे चेहरे झुलस जाते हैं .....
शायद इसी को क्रान्ति कहते हैं ....

Tuesday, June 21, 2011

वो एक ख्वाब न था !

हम-तुम  मिले जब , वो एक ख्वाब न  था 
बहारा था शायद , मगर अज़ाब न था !!

दिल-ए -महफ़िल  में हैं ,महफूज़ मंज़र सारे 
कोई खबर या  ख़त  का वो  हिसाब न था !!

झील की खामोशी सी तेरी मुरब्बत थी 
क्या हुआ  "नील " ,जो  कोई  ज़वाब न था !!

खनकते सिक्कों  से ये  रिश्ते टूट जाते हैं 
क्या ये कम है क़ि  तेरा कभी इताब  न था !!

तबस्सुम खिल जाए, तेरी हर हरक़त में 
इससे बढ़कर तो कोई और शबाब न था !!

किस्सा-ए-ग़म सुनाने की कोई गर्ज़ न थी 
ये दिल की दवा थी  ,कोई शराब न था !!



"नीलांश" 






Monday, June 20, 2011

चाँद!


 ख़्वाबों में एक आस जगा कर मिला
रात चाँद खुश था मुस्कुरा कर मिला

गम-ए-दिल दवा बनी दीदार-ए-यार में
मसीहा हो कोई जो घर आ कर मिला

रूह सुलग रही थी मिलन की आस में
बादलों की बूंदों को वो  बरसा कर मिला

तारों की बारात टिमटिमाते रहे मगर
वो तो उनको भी तरपा तरसा कर मिला

आइना कौन उसको दिखाएगा भला
वो तो जब मिला खुद को भुला कर मिला

सुबह -ओ - शाम जलता रहा वो मगर
चाँदनी से आज खुद को सजा कर मिला

बेमज़ा थे   हर रंग इंतज़ार-ए-होली में
हर रंग ज़माने के वो दिखला कर मिला

नूर-ए-आफताब लुटाता रहा ताउम्र जो
आज सारे रश्मों को वो मिटा कर मिला

"नीलांश "

Friday, June 17, 2011

उस रोज़ बड़े चैन से वो सोया था !





ज़माना मौसम सा हरदम रूप बदलता रहा
जैसे सांझ रोज़ आकर धुप निगलता रहा !!

ओस की महफ़िल थी ,हवा आई और खो गयी
वो मुसाफिर दूर कहीं ख्वाब पर पलता रहा !!

रिश्ते सारे बर्फ से इस शहर में बनते गए
गम के भीनी आंच में वो भी पिघलता रहा!!

अजनबी शहर से बड़ी उम्मीद की थी उसने
हर शख्स चाँद सा पर ,उस चकोर को छलता रहा !!

उसकी जुबान पर भी लगता था शख्त पहरा
सिला काफिरों सा उसकी बंदगी को मिलता रहा !!

ऐ "नील" उस रोज़ वो बड़े चैन से सोया था
और कब्र पर मोहब्बत का बस एक दिया जलता रहा !!



















Thursday, June 16, 2011

नूर-ए-खुदा से रौशन ये जिंदगानी हो गयी !

मिट गया वो जिस पे तेरी मेहरबानी हो गयी
बेनाम था मगर अब उसकी भी कहानी हो गयी!!

वो बादलों को ओढ़ लेती है   ,तुम तारों में खो जाते हो
खुद करते हो नादानी ,उसकी बदगुमानी हो गयी ?

ज़ेहन को दूर रख कर ही इश्क किया करना
वरना न फिर कहना कि, कारिस्तानी हो गयी!!

दर्द-ए-जिगर ही तो आशिकों कि मुकम्मल दवा है
इस दर्द को चख कर ही, मीरा दीवानी हो गयी!!

इश्क-ओ-मोहब्बत तो उसकी ही बंदगी है
नूर-ए-खुदा से रौशन ये जिंदगानी हो गयी!!

Tuesday, June 14, 2011

आनंद


"आनंद "   तेरी  ग़ज़लों  का  आनंद  है  निराला   
भरता  हूँ उनसे ही अपने जिगर का प्याला 
किसी  रोज़  कोई  ग़ज़ल  कहीं  गलियों  में  सुनाई  देगी 
रहे "नील"   न  वहां ,पर  होगा  वहीँ  पर  प्याला 

जिन्हें हो तृष्णा आनंद की  वो  चखेंगे  उसको  हरदम 
और  कुछ  नहीं   उनको मिलेंगे  मधुर गीत और नज़्म 
अभिषेक  मन के उपवन  की उसे पीकर ही हो सकेगी 
रब  की  ओर  होगा  मुखातिब  हर  आनंद  पीने  वाला 


"नीलांश "

(आनंद द्विदेदी जी जो बहुत प्यारे प्यारे ग़ज़ल लिखते हैं और उनकी ग़ज़ल पर मैं कुछ तुकबंदी करता हूँ ,उसी तुकबंदी को ये समर्पित रचना है .)
बहुत आभार आनंद जी आपका और आपकी  मधुर ग़ज़लों  का 

Saturday, June 11, 2011

मौजूदगी

मौजूदगी

# # #
फिजाओं से
सुन लो
कोई
धुन
सुरमयी
तो लेना
नाम मेरा....

बिखरे
मोतियों की
तरह
लो सपने बुन,
तो लेना
नाम मेरा....

लहरों में गुम
रौशनी
देख पाओ
कभी
तो लेना
नाम मेरा....

बादलों में
ढूंढ पाओ
छवि मेरी
तो लेना
नाम मेरा....

खोज सको
धुंए में
कोई चिंगारी
तो लेना
नाम मेरा....

पौधों से
सुन लो
किसी की
किलकारी
तो लेना
नाम मेरा.....

Wednesday, June 8, 2011

आऊंगा,ज़रूर मैं आऊंगा ....

जब  दुआएं  संग  है  
और  बाकी  है  जीने  की  ललक  ,
तब  सूरज   की  लाली   को  छुपा   लाऊँगा  
चाँदनी  से  सफेदी  चुरा  लाऊंगा 

घास  पर  नंगे पाँव चलते -चलते  हरे  हो ही  गये  हैं  अपने  सपने 
और  न  मिली   भी   मुझे  
वो   दूर  खड़ी  ललचाती  हुई  फलक  !!

तो  ख़्वाबों   के  समुंदर  में  डूब 
मोतियों  से  शब्दों  को  चुन  ..
गीतों  की  माला  ही  बना  लाऊंगा ,

पर  आऊंगा  ज़रूर  गाँव  वापस  ...
कुछ  नहीं   तो  सपनो  को  संग  ले  आऊंगा  ..

आऊंगा,ज़रूर   मैं  आऊंगा ....

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...