Sunday, January 26, 2014

नज़्म कहते हैं किसे और ग़ज़ल कहाँ पर है

नज़्म कहते हैं किसे और ग़ज़ल कहाँ पर है
कौन सी बात दिल में और क्या जुबाँ पर है

बंदगी ,बेकली ,दर- ब-दर का फिरना
जाने इलज़ाम क्या क्या मेरे गिरेबाँ पर है

क्यों बदलने सी लगी हैं शहर की नज़रें
कल तलक थी ज़मीं पर आज आसमाँ पर है

आज फिर मुंसिफ़ का फैसला होना है
आज फिर अपनी नज़र आपके बयाँ पर है

जाने है यकीं किसको "नील" आँखों का और
जाने किसको न यकीं तेरे दास्ताँ पर है

Sunday, January 12, 2014

जाते जाते भी हक़ यूँ अदा कीजिये


न हो हम से खता, ये दुआ कीजिये 
अब जो कीजिये बस बज़ा कीजिये 

कोई ले जाएगा पार दरिया में बस 
आप गफलत में यूँ न रहा कीजिये 

हैं मुश्किल बहुत और साँसें हैं कम 
यही ज़िन्दगी है तो क्या कीजिये 

हमें फिर ग़ज़ल में ही ढूँढेंगे आप 
भले अपने दिल से दफा कीजिये

बहुत से भरम हो रहे हैं हमें
हमें आप अब ख़फ़ा कीजिये

कोई हक़, छीनने का न दावा करे
जाते जाते भी हक़ यूँ अदा कीजिये

टूट जाएँ  जो आँखों के ख्वाब कभी 

तो फिर से शुरू सिलसिला कीजिये 

यूँ तो मिलते हैं दुनिया से ,मिलते रहें 

कभी हमसे भी हँस  के मिला कीजिये 

दोस्ती और मुहब्बत भी है रहमतें 

बस पत्थर को ही न खुदा कीजिये 

"नील " करता रहेगा वही मशगला 
पहले उसकी शग़ल  तयशुदा कीजिये 

Wednesday, January 1, 2014

हम भी उनके दीवाने थे


वो  आये  ख़्वाबों  में  दफतन एक रात 
राज़ -ए  -दिल   मगर  वहां  भी  न  बोले  


हम  भी  उनके दीवाने  थे  ,ना  आवाज़  दी  उनको !!

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...