अब जो कीजिये बस बज़ा कीजिये
कोई ले जाएगा पार दरिया में बस
आप गफलत में यूँ न रहा कीजिये
हैं मुश्किल बहुत और साँसें हैं कम
यही ज़िन्दगी है तो क्या कीजिये
हमें फिर ग़ज़ल में ही ढूँढेंगे आप
भले अपने दिल से दफा कीजिये
बहुत से भरम हो रहे हैं हमें
हमें आप अब ख़फ़ा कीजिये
कोई हक़, छीनने का न दावा करे
जाते जाते भी हक़ यूँ अदा कीजिये
टूट जाएँ जो आँखों के ख्वाब कभी
तो फिर से शुरू सिलसिला कीजिये
यूँ तो मिलते हैं दुनिया से ,मिलते रहें
कभी हमसे भी हँस के मिला कीजिये
दोस्ती और मुहब्बत भी है रहमतें
बस पत्थर को ही न खुदा कीजिये
कोई ले जाएगा पार दरिया में बस
आप गफलत में यूँ न रहा कीजिये
हैं मुश्किल बहुत और साँसें हैं कम
यही ज़िन्दगी है तो क्या कीजिये
हमें फिर ग़ज़ल में ही ढूँढेंगे आप
भले अपने दिल से दफा कीजिये
बहुत से भरम हो रहे हैं हमें
हमें आप अब ख़फ़ा कीजिये
कोई हक़, छीनने का न दावा करे
जाते जाते भी हक़ यूँ अदा कीजिये
टूट जाएँ जो आँखों के ख्वाब कभी
तो फिर से शुरू सिलसिला कीजिये
यूँ तो मिलते हैं दुनिया से ,मिलते रहें
कभी हमसे भी हँस के मिला कीजिये
दोस्ती और मुहब्बत भी है रहमतें
बस पत्थर को ही न खुदा कीजिये
"नील " करता रहेगा वही मशगला
पहले उसकी शग़ल तयशुदा कीजिये
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (13-01-2014) को "लोहिड़ी की शुभकामनाएँ" (चर्चा मंच-1491) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हर्षोल्लास के पर्व लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लाजवाब शेर हैं सभी इस गज़ल के ... उम्दा गज़ल ...
ReplyDeleteBahut aabhaar mayank daa,
ReplyDeleteDhanyvaad kaalipad ji
Aabhaar digambar ji